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________________ कविवर बुलालोचन्द काष्ठा संधी गुरुपों की सेना करने लगे तथा विशेतिया जैसवाल मूलसंधी बने रहे । दान इस प्रकार दाना देवान जैन समाज धानन्द सहित रहने लगा । パン लेकिन कुछ समय पश्चात् राजा का स्वर्गवास हो गया और उसके मरने के पश्चाद दूसरा ही राजा वहां का स्वामी बन गया। उसका नाम तिहिनपाल प्रसिद्ध था । वहां से जैसवाल चारों ओर निकल गये। इसी बीच प्रतिम केवली जम्बूस्वामी की मथुरा नगर के समीप स्थित न हुआ भगवान के कंवल्व को देखने के लिए सभी मथुरा के उद्यान में एकत्रित हो गये । त्रिभुवन गिरि को छोड़कर सभी जैसवाल वहाँ श्रा गए। भगवान के दर्शन कर के प्रत्यधिक प्रसन्नता हुई । उसी स्थान से जम्बू स्वामी ने निर्वाण प्राप्त कर पंचम गति प्राप्त की। उसी स्थान पर जैसवाल रहने लगे तथा भपना २ कार्य करने 1 लगे । प्रषने २ गोत्रों में विवाह आदि कार्य करने लगे । इस प्रकार कवि ने जैसवाल जाति की उत्पति कथा का अत्यधिक महत्वपूर्ण वर्णन किया हैं । उपरोतिया शाखा में गोत्र एवं तिरोतिया शाखा में ४६गोत्र माने जाने लगे । 1 — ३६ कवि प्रशस्ति यमनकोश के अन्तिम ११ पद्मों में कवि ने अपना परिचय दिया है जिसका वन प्रारम्भ में किया जा चुका है। कोश के अन्तिम पथ में कवि ने लघुता प्रगद की है गुनी ओ प्रीतिसों, टुकहि लेइ सम्हारि । लघु वरिय तुक छंद कौं, क्षमियों चतुर विवारि ॥६५॥ इस प्रकार वचन कोश की रचना करके कविवर लुलाखीचन्द ने साहित्यिक १. जम्बूस्वामि भयौ निरबान, पाई पंचम गति भगवान । जैसवाल रहे तिहि ठाम, मन मान्यो जु करइ कमि ॥ ७३ ॥ कारण गाम गोत परनए, इहि विषि जैसवाल बरनए । उपरोसिया गोस छत्तीस, सिर्फ तिया गनि छह चालीस ||७४ || १५६।। |
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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