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________________ कसित दलाली स्ट, अलाक दास एवं हेमराज उलंघन किया है। बालक के जाने से क्या हुना । धर्म के बिना धन सम्पदा एवं जीवन सब व्यर्थ है । इस प्रकार बहुत सा समय व्यतीत हो गया । उल प्रघसर पर सब मंत्रियों ने मिल कर उसे राज्य भार सौंप दिया। जब वह राजा बन गया तो अपने अपने सभी सम्बन्धियों का का बुला लिया। तथा सबको गांव दे दिये तथा स्वयं त्रिभुबन नगर का राजा बन गया ! बागा कुल में से पुरोहित की स्थापना की गयी तथा उन्हें लिख कर दे दिया कि जिस घर में पुत्र का विवाह होगा तो वह पांच रुपया ब्राह्मण को देगा तथा इसमें कमी अथवा अधिकता नहीं होगी। इसके पश्चात् सबके मन में यह बात पायी की वे सब बिछुड़ गये हैं । यदि वे सब मिल जाते हैं तो अत्यधिक प्रानन्द होगा। तब राजा सहित सभी परिवार वाले गढ़ से नीचे प्राये और जिन मन्दिर में भाकर एकत्रित हो गये । सब पंचों को बुला लिया गया । सभी ने हाथ जोड़ कर यही प्रार्थना कि ऐसा काम करो जिससे दोनों एक हो जावें ।। जो कुछ गल्ती हो गयी उसे मूल जाना चाहिये । अब पहिले की परम्परा को अपनाना चाहिये। सभी ने यह भी निर्णय लिया कि राजा का मान मंग नहीं करना चाहिये । सभी ने मिलकर राजासे मादेश देने की प्रार्थना की लेकिन परस्पर में विवाह करने की प्राशा देने पर वे सब देश को ही छोड़ देंगे यह भी निवेदन किया । राजा ने भी मन में सोचा कि हठ करने से प्रसन्नता नहीं होगी। इस प्रकार समाज की बात मान कर राजा महल में चले गये।। इसके पश्चात जैसवाल जन समाज दो शाखाओं में विभक्त हो गया । जो समाज गढ़ में रहता था वह उपरोतिया कहलाने लगा तथा जो नीचे रहता था बह तिरोतिया नाम से प्रसिद्ध हो गया । उस समय ये दोनों नाम प्रसिद्ध हो गये और इसी नाम से ये परस्पर में व्यवहार करने लगे । उपरोतिया शास्त्रा वाले सवाल १. विनती करी राय सौ सर्व, प्राग्या वेह अब हम तय ध्या काज नहीं नरेश, हरु करो तो तन है नेश ॥१४॥ तब मन में सोधियों नरिक, हठ के कोए नहीं प्रानन्द । मानि यात नप गह पै गये, जसबाल दुविधि तब भए ॥६५३१५५।।
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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