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________________ कविवर बुलास्त्रीचन्द मालक कहै उभय करि जोरि, जब प्रभू निज कर मंछ मरोरि । कोष बिना मछमहीं हाथि, यासे हम सके नरनाथ ॥४७॥ बालक का उत्तर सुनकर राजा ने प्रसन्न होकर उसे गले लगा लिया। इसके पश्चात राजा ने सबको सम्मान सहित विदा किया । सबको रहने के लिये नगर में स्थान दिया गया । सभी लोग सुख पूर्वक रहने लगे। कुछ समय पश्चात् राजा ने सभी जैसवाल जैनों से कहा कि वह अपनी लड़की उस बालक को बना चाहता है । वह उसकी बराबर सेवा करती रहेगी । लेकिन राजा के प्रस्ताव का सभी ने विरोध किया और ऐसी ही बात पर जैसलमेर छोड़ने की बात का स्मरण किया । राजा ने क्रोधित होकर बालक को पकड़ कर बुला लिया तथा उसके साथ अपनी कन्या का विवाह कर दिया । इसमें किसी को कुछ नहीं चली। लेकिन उस बालक ने राजा को प्रनीति के मार्ग पर जाते हुए देख फर अन्न जल का त्याग कर दिया तथा कह दिया कि जब तक वह अपने माता पिता को नहीं देख लेगा तब तक उसके हृदय में शान्ति नहीं भावेगी। मही नहीं वह प्राण तब देगा। राजा उसका क्या बिगाड़ लेगा। राजा ने बालक के साथ किये गये कपट तथा बालक द्वारा किये जाने वाली अपयश पर भी विचार किया । राजा ने चालक के पूरे परिवार को गढ़ में बुला लिया । साथ ही उसके अन्य हितषियों को भी उसी के साथ बुला कर गढ में बसा दिया । इम्न प्रकार दो हजार परिवार नीचे रह गये जो जिन वचनों के अनुसार चलते रहे । उन सबने मिल कर यह निर्णय लिया कि दोनों का (गढ में रहने वालों का एवं शहर में रहने वालों का) परस्पर में मिलना कठिन है । न तो उनका कोई व्यक्ति हमारे पास आता है पौर न कोई हमारा व्यक्ति उनके पास जाता है । सन्होंने गुरु की शिक्षाभों का १. तिन सय मिल यह ठहराव, मेंइनिसौं पत्र परम प्रभाव । कोऊ हमरौ उनिके नहीं जाइ, उनिको ह्यां कोऊ घर न पाइ ॥५७॥१५॥ तव नृप सहित सकल परिवार, पाए गढ़ नीचें सागार मंठे जिन मन्दिर नप माहि, सकल पंच तहां लए बुलाए ।।६।। बिनती करी जोरि के हाथ, सोई घरौ जो होइ एक साथ । बगसौं चूक जु हम मैं परी, बड़ो सोइ जो चित्त न परी ।।२।।
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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