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________________ कविवर ब लाखोचन्द प्रतिमा बनाने की नयी परम्परा डाल दी । लेकिन जैन धर्म में दूसरों को दीक्षित करने की जब बात मालूम पड़ी तो उन्हें सन्तोष हुमा और वे भी वहीं मा गये जहाँ मुनि श्री लोहामार्य थे । जब उन्होंने भट्टारक उमास्वामी के आने की बात सुनी तो उन्हें वे लिखाने गये और बड़े उत्साह से उनका स्वागत किया। लोहाचार्य ने उमास्वामी को चरण पकड़ लिये । मुनिराज ने मानन्दित होकर लोहाचार्य को उठा लिया और उनको चरणों से उठाकर अपने पास पर बिठा लिया। सभी नागरवासियों ने उमास्वामी की वन्दना की और उन्होंने सबको धर्म वृद्धि देते हुए पाशीर्वाद दिया । उनकी अगवानी करके नगर में उसी मन्दिर में लाये जिसमें काष्ठ की प्रतिमा विराजमान थी। उमास्वामी से जब नगरवासियों ने उनसे पाहार ग्रहण करने की प्रार्थना की तो वे कहने लगे कि जो उन्हें भिक्षा देना चाहेगा तो प्राचार्य श्री को उनकी बात माननी पड़ेगी। लोहाचार्य तत्काल विनय पूर्वक प्राज्ञा देने के लिये प्रार्थना करने लगे जिससे उनका जीवन धन्य हो सके । उमास्वामी ने कहा कि वे सब शिष्यों में सपूत हैं जो मिध्यात्म का खंडन करने वाले एवं जैनधर्म का पोषण करने वाले हैं तथा जिन्होंने जैनधर्म में वृद्धि की है। लेकिन एक शिक्षा वे उनकी भी माने और भविष्य कि काष्ठ की प्रतिमाविराजमान करना बन्द १. चली बात चलि पाई तहां, उमास्वामी भट्टारमा जहाँ । मुनि जिय चिन्ता भई अगाध, करी काठ की नई उपाधि ।।२८।। प्रावत सुनि श्री निज गुरु भले, मागे होन भावारज चले । जीनै सकल नगर जन संग, वाजन प्रति बाजे मनरंग ॥२६॥ सब मुनि कहे सुनो गुन जुत, शिष्यन में तुम भये सपूत । परमत भंजन पोषन जैन, धर्म बढायो जीत्यो मेंन ॥३४॥ वही सीख हमरे करि बरो, काठ तनी प्रतिमा मति करो। ३. सबतें काष्ठ संघ परबरयो, मूलसंघ न्यारो विस्त र्यो । एक चना कोज्यौ हूँ दारि, त्यो ए दोऊ संघ विचार ॥३८॥
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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