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________________ ३० कविवर बुलाखीचन्द, बुलाकीदास एवं हेमराज पोर उनको अगरवाल कहा जाने लगा । उनके १८ गोत्र हो गये जो ऋषि के पुत्रों के नाम से प्रसिद्ध हो गये ।। एक बार पुरवासियों ने सुना कि कोई मुनि पाये हुये हैं और वे नगर के बाहर ही उत्तरे हुये हैं। नगरवासी उन्हें साघु जानकर भोजन हेतु प्रार्थना करने गये । मुनि ने नागरिकों से कहा कि वह तपस्वी है इसलिए यदि कोई श्रावक धर्म के पालन करने की प्रतिज्ञा लेवे तथा जिसे अन्य धर्म प्रच्छा नहीं लगता हो तो वह उन्हें प्रादरपूर्वक अपने घर ले जा सकता है । उसके घर पर वे भोजन करेंगे । भुमि के वाक्य सुनकर सभी नागरिक विस्मय करने लगे तथा प्रापस में चर्चा करने लगे कि ये कैसे मुनि हैं जो भोजन देने पर भी भोजन ग्रहण नहीं करते ।। मुनि के प्रभाव से कुछ लोग जिनधर्मी बन गये और मुनि के चरणों में प्राकर बन्दना करने लगे । गुरु के उपदेश से धर्म का ममं समझ लिया। उसके पश्चात् मुनि ने नगर प्रवेश किया । नव दीक्षित जैनों ने मृनि को भली प्रकार प्राहार दिया और अनेक प्रकार के उत्सव करने लगे। मुनि श्री ने उनको प्रतिबोधित किया और इस प्रकार अग्रवाल जैन वने । प्रारम्भ में वे केवल ७०० घरथे । वहीं जिन मन्दिर का निर्माण कराया गया और उसमें काष्ठ की प्रतिमा विराजमान कर दी। दूसरे ही पूजा पाठ बना लिये जो गुरु विरोधी थे । यह बात पलती चलती भट्टारक उमास्वामी के पास प्रायी । बात सुनकर मुनि को खूब चिन्ता हुई कि काष्ठ की १. तिनि को वंश बढयो प्रसराल, ते सब काहिमे अगरवाल । उनके सब मष्टादश गोत, भए रिषि सुत नाम के उदोत ।।१६।। २. तिनि सुन्यो एक पायौ मुनि, पुरु के निकट उतर्यो गुनी। भिक्षुक जांनि सकल जन नए, भोजन हेत विनवत भए ।।२०।। तब मुनि कहें सुनों घरि प्रीति, हम तपसीन की प्रसी रीति । जो कोक श्रावक घमं कराइ, मिथ्यामत जाकों न सुहाइ ॥२१॥ सो अपने घरि पादर करें, ले करि जाइ दया तव चरें। और ग्रेह नहीं प्राहार, यह हम रीति सुनी निर्धार ।२२।। १४५ ।।
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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