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कविवर बुलाखीचन्द
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लोहाचार्य प्रगरोहा ग्राम भाये । जो नंदीवर गांव के नाम से विख्यात था ।
अगरोहा ग्राम में भग्रवालों की बस्ती थी। वे धनाढ्य थे तथा दूसरे धर्म को मानने वाले थे । दूसरे धर्म की परवाह नहीं करते थे। उनकी उत्पत्ति के बारे में कवि ने निम्न प्रकार महान किया है...
अग्रवाल जन जाति को उत्पत्ति
अगर नरम के ऋषि व जो तपस्वी ५ बनकासा थे तथा जिनकी माता ब्राह्मणी थी। एक दिन जब वे ध्यानस्थ थे तो किसी नारी का शब्द उनके कानों में पड़ा । नारी का सम्द सुनकर ऋषि कामातुर हो गये । शब्द बड़े मधुर एवं ललित थे तथा उसका स्वर कोकिल कंठी था। ऋषि का ध्यान छूट गया तथा वह उसका सौन्दर्य निरखने लगे। उस नारी ने कहा कि वह नाग कन्या है इसलिये यदि ऋषि को काम सता रहा है तो वह उसके पिता से बात करे । वह ऋषि का रूप देखकर कन्या दान कर देंगे । यह सुनकर ऋषि खड़े हो गये मोर नाग लोक को चले गये । नागिनी ने ऋषि तपस्वी को बहुत पादर दिया । ऋषि ने नाग कन्या के पिता से प्रार्थना की कि वह अपनी कन्या का उसके साथ विवाह कर । नाग ने ऋषि की बात मान कर अपनी कन्या जसे दे दी । ऋषि कन्या को अपने साथ ले प्राया । उससे १८ लड़के हुए जिनमें गर्ग प्रादि के नाम उल्लेखनीय है । उनकी वंश वृद्धि होती गयी
१. अगर नाम रिष हैं तप धनी, वनवासी माता वाभनि ।
एक दिवस बैठे धरि ध्यान, नारी सब्द परयो तब कोन ॥१२॥
मधुर वचन और ललित प्रपार, मानों कोकिलो कंठ उचार । छुटि गयो रिष ध्यान अनूप, लागे निरिखिन नारी रूप ॥१३॥
तब ऋषिराम प्रार्थना करी, तब कन्या हसि जिम में बरी । भव तुम दे हमें करी दान, ज्यों संतोष लहै मम प्रान ।।१७॥
नाग दई तब कन्यां वांहि, कर गहि अगर ले गए ताहि । ताके सुत अष्टादस भये, गर्ग प्रादि सुत में वरनए ।।१८।१४५।।