________________
कविवर बुलाखाचन्द, बुलाकीदास एवं हेमराज
करें । क्योंकि काष्ठ, प्रनि, जल लेप, प्रादि से विकृत होसकती है । लोहचार्य ने अपने गुरु की बात मान ली । उन्होंने उनके हाथ से सुरही के बाल वाली पिच्छी ग्रहण की। दोनों गुरु शिष्य प्रसन्न हो उठे । उसी समय हा मंत्र फाष्ठा संघ कहलाने लगा। और वह मूलसंघ से पृथक माना जाने लगा यह कोई नया संघ नहीं है । संघ में जैनधर्म के प्रतिपादित सिद्धान्तों का पालन होता है ।
काष्ठासंध की उत्पत्ति का इतिहास कहने के पश्चात् कवि ने मक्तामरस्तोत्र एकीभावस्तोत्र, भूपालस्तोत्र, विषापहारस्तोत्र एवं कल्याणमन्दिरस्तोत्र के रचे जाने की कथा लिखी है। कवि के कथा कहने का ढंग बड़ा ही पाकर्षक है ।
जैसवाल जाति का इतिहास
कल्याणमन्दिरस्तोत्र का समाप्ति के पश्चात् कवि ने इक्ष्वाकु वंशीय जसबाल जाति का इतिहास कहने की भावना व्यक्त की है।
जैमवाल इक्ष्वाकु कुल, तिनि को सुनौ प्रबन्ध
ऋषभदेव तीर्थकर ने गृह त्याग करने से पूर्व महाराजा भरत को प्रयोध्या तथा बाहुबली को पोवनपुर का राज्य दिया तथा शेष पुत्रों को उनकी इच्छानुसार राज्य शासन सौंप दिया । उन्हीं में से एक पुत्र शक्ति कुवर जैसलमेर चल कर पाये और जैसलमेर मण्डल का शांतिपूर्वक राज्य करने लगे। उनका वंश बढ़ने लगा तथा जैन धर्म की वृद्धि होने लगी। कुछ समय पश्चात् उन्हीं के वंश में एक राजा ने बनधर्म छोड़कर अन्य मत की साधना करने लगा। शुभ कर्म घटने लगे तथा पृथ्बी पाप बढ़ने लगे । एक दिन दूसरे राजा ने राज्य पर चढ़ाई कर दी जिससे सब राज्य चला गया । लेकिन प्रजा ने उसे अपने यहां रख लिया। राज्य से वंचित होने के
१. श्री जिगवेव कषभ महाराज, अब वाटयो सब महिको राम मवधिपुरी बई भरथ नरेस, बाहुबलि पोचमपुर देश ॥१॥ मोर मुतम जो माग्यो हाम, श्री प्रभते वयो प्रभिराम । कुंबर शक्ति मिन बाट नरेस, चलि पाए नहीं जैसलमेर ।।२।। वे मंडल को साधे राज, सुख साता के सों समाज । तिमि को गंश बदयो असराल, जनधर्म पाल महिपाल ॥३॥