________________
कविवर बुलाखीचन्द, बुलाकीदास एवं हेमराज
षडग दंड मिल चौदह भए, इनि के भेद सुनौ बजए । सेनापति श्री सो गुन लेत, नव प्रकार संन्या सज देत ||८४ / १२६|| उक्त चौदह रत्न चक्रवर्ती के ही होते हैं ग्रन्य किसी राजा को यह सौभाग्य प्राप्त नहीं होता | कवि ने इन सभी का विस्तृत वर्णन किया है । भन्त में लिखा है
२६
चत्र पुण्य प्रताप बल, चौदह रत्न अनूप i
औरत का को मिलें, मिलें अनेक जग भूप ॥१७॥ १२७॥
गौतम द्वारा महावीर का अनुयायी बनाना
कवि ने चौरासी बोल, श्वेताम्बर मत उत्पत्ति वर्णन आदि पर भी विस्तृत प्रकाश डाला है। इसके पश्चात् कवि एक महावीर के सत्र में पहुँच जाता है। कैवल्य होने पर भी जब भगवान की दिव्य ध्वनि नहीं खिरती है तो इन्द्र को बड़ी चिन्ता होती है और एक वृद्ध है। ह उससे "काल्यं द्रव्य षटक" श्लोक का अर्थ समझना चाहता है लेकिन जब प्रर्थ समझ में नहीं श्राता है तो वह अपने शिष्यों के साथ महावीर के समवसरण में प्राता है । समवसरण में लगे हुए मानस्थंभ को देखते ही गौतम को वास्तविक ज्ञान उत्पन्न हो जाता है और वह महावीर की निम्न प्रकार स्तुति करने लगता है ।
गौतम नम्मो चरन अष्टांग, लागी जिन स्तुति पढन प्रभंग । दीन दयाल कृपा निधि ईस कर पंकज नाऊं शीस || १४ / १३८ ||
गौतम को तत्काल मन:पर्यय ज्ञान की प्राप्ति हो गयी। वह महावीर के शिष्य प्रमुख शिष्य हो गया 11
में
उसी समय मगध का सम्राट श्रेणिक रानी चेलना के साथ वहां आया। श्रेणिक बौद्धधर्म का अनुयायी था लेकिन चलना महावीर की परम भक्त थी। समयसरण में थाने के पश्चात् भगवान महावीर ने उसके पूर्व भवों का वृतान्त विस्तार के साथ सुनाया ।
१.
तब गौतम मुनिराज सरेष्ठ, सकल गनि मध्य भए वरेष्ठ || १६/१३८