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कविवर बुलाखीचन्द
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ता परनी चेलना अनूप, जाके रत्न सम्यक्त स्वरूप ।
तब सुनि भनक नृप की कथा, श्री गुरु मुख तँ भाषी जु जथा । श्रेणिक द्वारा जैनधर्म स्वीकार करने को कथा
पूरी कथा में राजा श्रेणिक चेलना के प्राग्रह से फिस प्रकार जैनधर्म का अनुपी : न इसान रिमा लुगा है । सर्व प्रथम राजा श्रे रिशक ने बौद्धधर्म की प्रशंसा की तथा जनधर्म के प्रति अपने विचार प्रगट किये ।1 चेलना के कहने से राजा ने पहिले बौद्ध साधु को बुलाया और विभिन्न प्रकार से उसकी परीक्षा ली । फिर जैन साधु की चेतना ने परिगाहना का 1 परीक्षा में जैन साधु वास खरा उतरने पर राजा भणिक ने जैनधर्म स्वीकार कर लिया।
सुनि निक संसे उडि गई, दृढ प्रतीति जिनमत पर भई । तब रानी कियो अंगीकार, धन्य सुबुद्धि पवित्र अवतार ॥३०॥ निज पति को तिन कीनों अन, कोष तनों उर से गयो फैन । वा मत बसि गयो पहिलेक्ख कहि न सके
नहि जहाँ दुख केते समर्क ॥३१॥ १४३ ॥ राजा श्वे णिक ने भगवान महावीर से साठ हजार प्रश्न किये और उनका समाधान भी सुना । गन्स में अषाढ सुदी १४ को सभी मुनिजनों ने योग धारण किया तथा कालिक सुदी १४ तक योग धारण किये रहे । लेकिन कातिक बुदी प्रमावस्या की रात्रि को अब प्रभात काल में चार घडी रही थी सब भगवान महावीर मे निर्वाण प्राप्त किया।
कातिग यदि माषसफ रीति, चार घडी जव रह्यो प्रभात ॥५॥
१. जैन कहां जांकी जरघरे, तहाँ न कोऊ क्रिया प्राचरे ।
बोध सने गुरु दीन दयाल, जन जती निरषन के हाल ।।
पशुचि अपावन बोध विहीन, क्रौन अंग निमें परवीन । ७६ ।। १४०।। २. राजा श्रेनक चरित में, कयौ संक्षेप सुनाइ ।
पति हितकारी भाव की, परमत नहीं सहाइ ॥१।। १४३ ।।