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कविवर बुलाखोचन्द
चन्द्ररेखा मंत्र', श्रीमंत्र, मंत्र प्रादि का अच्छा ये ज्ञाता थे ।
कवि ने रूपस्थध्यान एवं ध्यान का वर्णन करने के संख्या का वर्णन किया है ।
१.
२.
२३
पापभक्षिी विद्या मंत्र, असि भाऊसा मंत्र सिद्ध मिलता है । जान पड़ता है कवि मंत्र शास्त्र के भी
३.
षट् ब्रव्य वर्णन
जीव तत्व पुदगल, धर्म, अधर्म, प्राकाश और काल इस प्रकार पांच प्रकार का है। पुदगल द्रव्य मूर्तिक तथा शेष प्रसूतिक है * शब्द एक पर्याय है तथा वह प्रतिक है इसके पश्चात् कवि ने
न किया है ।
षट् द्रश्यों का वर्णन के पश्चात् श्राढ कमी को प्रकृतियों का मन किया गया
४.
रूपातील ध्यान' का भी वर्णन किया है। पश्चात् कवि ने जीव की विभिन्न जातियों की
नर पशु नारक प्रो सुरदेव, लाख चौरासी जाति कहेव । इतने रूप चिदानंद घरें, जाति स्थान नाम परिवरं ||१८/८३.
भी पुद्गल द्रव्य कर ही शेष द्रच्यों का संक्षिप्त
ॐ नमो भरहंताणं इति मंत्र :
ॐ ह्रीं श्री वर्णमंत्र :
राज रहित इंत्री रहित सफल कर्म नसाई |
जीन तनी विश्राम यह रूपातीत कहाई ॥१५८३.
इह रूपस्थ धनुष गुण जिन सम मातम ध्यान । करियोको अभ्यास मुनि, पावें पद निरमान ॥४॥ ८३
पुदगल धर्माधर्मं श्राकास, काल मिलें पांची परकार | है प्रजीव इनकी नाम, तिनि में मूरति पुदगल षांम ||४४ / ८४ ।।
५. सुनि पुदगल के सकल पर्याय, प्रथम शब्द भाष्यो जिनराज | शब्द कहे वरण वम रूप, पुदगल को पर्याय तूप ||४६ / ६४ ॥