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कविवर बुलास्त्रीचन्द, बुलाकीदास एवं हेमराज ध्यान का स्वरुप
रौद्र ध्यान वाला प्राणी हिंसा करने में धानन्दित होता है। चोरी करता है, झूठ बोल कर प्रसन्न होता है । विषयों के सेवन में अपना कल्याण मानता है। ये पारों री ध्यान के अंग है । पृथ्वी, अग्नि, वायु, जलतत्वों का भी प्रस्तुत ग्रंथ में वर्णन हुआ है।
पिउंस्थान ध्यान पदस्थ ध्यान मोक्ष मार्ग का साधक है । कवि ने पदस्थ ध्यान का वर्णन विभिन्न मंत्रों के साथ किया है। इन मंत्रों में ह्रींकार मंत्र, अपराजितमश्र, षोडशाक्षर मंथर, घडाक्षरीमंत्र, चसुवर्णमंत्र, बीजाक्षरमंत्र, धत्तारिमंगलमंत्र, त्रयोदशाक्षरमंत्र सप्ताक्षरमंत्र, पंचाक्षरमंत्र,
१. हिंसा करत चित्त प्रानंद, चोरी साधत हिए ननंद ।
बोलत झूठ स्तुशो बहु होइ, संबत विषम दुलासी जोई।
रौद्र ध्यान के चारघों अग, कर्म बंध के हेतु अभंग 11६६७६. २. एका पात पाठ वार जी जपें, प्रभुता करि सब जग में दिएँ ।
एक पास जुतो फल होइ, कर्म कालिमा हारे खोइ ।।४।।१०।। ३. अहत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यो नमः
करि एकान पिस परि प्रीति, हो। उपवास तनों फस मीस ।।४।। ४. मरहूत सिद्ध इति षडाक्षरी मंत्र ५. अरहंत इति चतुर्वर्णमंत्र ६. ॐ ह्रां ह्रीं क्ल, लह्रौं लः मति पाऊसा नमः इति बीजाक्षर
मंत्र । ७. मंगल सरण लोकतम जानि, चारि भांति करि कीयो वलान ।
घ्यावे जपें चित्त की ठोर, ताको मुक्ति रमणि वरें दोरि ॥५.४११८० ८. * अरहंत सिदासयोग केवली स्वाहा । इति त्रयोदशाक्षर
मंत्र १. ॐ ह्रीं श्री प्रहन्नमः 1 इति सप्ताक्षर मंत्र । १०. नमो सिद्धाणं