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कविवर बुलाखीचन्द
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संयम स्थानों का वर्णन मिलता है | दर्शन स्थान का वर्णन के पश्चात् छह लेश्यामों पर विस्तृत विचार किया गया है। कृष्ण, नील कोत, पीत पद्म मौर शुक्ल लेश्या को निम्न उदाहरण द्वारा समझाया है---
१.
सुनौ एक इतिको दृष्टांत प्रकटे विमल बोध की कांत
गए पुरुष छह वनह मझार, मान वृक्ष फल देख्यो सार ||२६|| सबन शुभंग अरु बहु फल पर्यो, जांकी छांह पथिक श्रम हो । खेवट प्राणी ता तरजाइ, फल भक्षण की ईच्छा भाई ॥१२०॥
चौदह गुणस्थानों का भी वर्शन करके कवि ने चौदह जीव समासों का वर्णन किया है । 2 ये सब दार्शनिक वन है जिसे कवि ने अपने ग्रंथ में स्थान दिया है । ऐसा लगता है कवि ने गोम्मटसार जीवकांड को अपने कथन का मुल्य भाषार बनाया है ।
पंच परावर्तन एवं जाति स्थानों के वर्शन के पश्चात् कवि चार प्रकार के ध्यानों का वर्णन प्रारम्भ करता है ।
२.
कृष्ण बनी कई जर काटिये, पीछे वांके फल वॉटिये | तब बोल्यो श्रंग जाके नील, गोदें काटत करो न ढील ||३१|| या तक की काटी सब डारि कहि कापोत घनी निर्दार । गुच्छा तोरि ले रे मीत, म भाषे जाके जर प्रीति ।। ३२ ।। चीन लेहु पके फल सबै बोल्यो पद्म घनी यह तवें । गिरि लेहु मति लाउ हाथ, कहँ सुकल वारी गाय ||३३||
परि षट लेस्यां स्वांग मनूप, नाषत फिरें जीव विद्रूप । काल अनादि गये इहि भांति, मातम धनुभो बिना नसांत || ३४ ॥ ७०
संजम और प्रसंजम जानि, छेदोपस्थापन परमनि । जयाख्यात सामायिक अंग, सूक्ष्म सांवराय गुण जंग
परिहार विशुद्धि कहीं संजमा, सांतीं स्वांग घरं श्रतिमा | १२||६६ ।।
एई चौदह जीव समास, करें श्रातमा लहां निवास
जो लौ संसारी कहणार, तोलो इनमें भ्रमन कराइ ॥ १०१ ॥ ७३ ॥