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कविवर बुलाखीचन्द, बुलाकीदास एवं हेमरजा
ऋद्धि के प्रसंग में अतस्कंध व्रत दर्शन में प्राचार्य कुन्दकुन्द के पांच नामों की उत्पत्ति कथा, विदेह क्षेत्र गमन, भट्टारक पदस्थापन आदि प्रच्छा वर्णन दिया है ।
गर्व में
कवि ने सभी कल्याणकों के वर्णन का श्राधार जिनसेनाचार्य कुत श्रादिपुराण को बनाया है जिसका स्वयं कवि ने उल्लेख किया है
अल्प बुद्धि वरणों संक्षेप, आदि पुराण मिर्ट भ्रम वेषु ।
बारह विधि तपुकीनो ईश, जगत शिरोमनि श्री जगदीश ||३० / ५६
ज्ञान कल्याणक
ऋषभदेव को कैवल्य होते ही समोसरन की रचना की गयी । जिसका वर्णन कवि ने विस्तार से किया है । यद्यपि उसने अपने को थल्पवृद्धि लिखा है । लेकिन मवसरण का वर्णन उसने १७४ पथों में लिखा है । ऋषभदेव ने अपना उपदेश मागधी भाषा में दिया था । सास तत्व एवं नो पदार्थों के विस्तृत परिचय के लिये कवि ने हेमराज कृत कर्मकांड, पंचास्तिकाय ग्रंथों को देखने के लिये लिखा है। इसके पश्चात् सा तत्व एवं नय पदार्थ का विस्तृत वर्णन किया है
जीव श्रजीव और माधव संवर निर्जर बंध |
मोक्ष मिले ए जानियें, सप्त तत्व संबंध ॥१॥
पुन्य पाप हैं ए जुड़े, नव इनि मांहि मिलाइ | जिनवानी नव पद विमल, सो वरणों मुनि ताहि ||२||६३१७
जीव तत्व के वर्णन में कवि ने सात प्रकार के समुदघातों का वर्णन किया है।"ये हैं जीव वेदना समुद्घात् कषाय समुद्घात, वैक्रियक समुद्धात मरणातिक समुद घात तेजस समुद्घात, माहारक समुद्घात केबल समुद्घात, इसके पश्चात् सात प्रकार के
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मुख्य मागधी भाषा जाति, सबके सुनत होई दुख होनि ।।६६ / ६३. जो कोई इनि सातनि को भेद, व्यौरी पाहों जो तजि खेद 1 कर्मकांड पंचसुकाम, हेमराज कृत खोजो मांहि ।। ७४ ।। ६३ ।। ३. समुदा हैं सात प्रकार तिनि के भेद सुनो तुम सार|२७|| ६६||