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________________ कविवर बुलास्त्रीचन्द १९ एक दिन राजसभा में ऋभदेय सिंहासन पर बैठे थे । नीलांजसा अपसरा का नृत्य हो रहा था। कवि ने उसे नटी की संज्ञा दी है तथा प्रागे पातुरी कहा है । ये तत्कालीन बन्द थे जो राज्य सभागों में नृत्य करने वाली के लिए प्रयुक्त किये जाते थे। अचानक नीलांजसा नृत्य करती हुई गिर गयी इससे प्रभु को वैराग्य हो गया थे बारह भावनात्रों के माध्यम से संसार के स्वरूप पर विचार करने लगे । कोश में इन भावनामों बहुत ही उपयोगी एवं विस्तृप्त वर्णन हमा है । जो कवि की विषय वर्णन करने की शक्ति की पोर संकेत करता है । ऋषभदेव के वैराग्य के समाचार सुनते ही स्वर्ग से लौका तिक देव तत्काल वहाँ प्रावे और उनके वैराग्य भावना की प्रशंसा करने लगे। उसी समय ऋषभदेव ने भरत का राज्याभिषेक किया। बाहुबली को पोदनपुर का राज्य दिय. 14 :ने दूसरे मुजों को भी नुर राम गट दिया । सब भाई भरत की सेवा में रहते लगे। उस दिन चंत्र कृष्णा नवमी थी। ऋषभदेव ने एक विराट समारोह के मध्य वैराग्य धारण कर लिया । सब प्रकार के परिग्रह को त्याग कर के निर्गन्थ दिगम्बर हो गये । केश लुम्बन किया। तथा सब प्रकार के पारवारिक एवं अन्य सम्बन्धों से अपने आप को मुक्त करके पंच महावत धारण कर लिये। परम दिगम्बर ऋषभदेव को स्वयमेव पाठ प्रकार की ऋद्धियां प्राप्त हो गयी। जिनके कारण उनको अपार शक्ति मिल गयी 1 कवि ने इन ऋाड़ियों का विस्तार से वर्णन किया है । जैसे बीज बुद्धि ऋद्धि के उदय से एक पद पढ़ने से अनेक पदों का ज्ञान हो जाना तथा एक श्लोक का अर्थ जानने से पूरा ग्रंय का ज्ञान स्वयमेव हो जाना बुद्धि ऋद्धि का फल होता है बीज बुद्धि जन उदय कराइ, पढत एक पद श्री जिनराय । पद अनेक की प्रापति होय, यह था बुद्धि तनों फल जोइ । एक प्रलोक अर्थ पद सुने, पूरण ग्रंथ प्रापत भने ।।३।।२७. - - १. ए शुचि बारह भावना, जिन ते मुक्तिनि वास । श्री जिनबर के चित्त में, तब ही भयो प्रकाश ॥६॥२६ ।। २. मंडे पंच महावत पोर, त्यागौ सकल परिग्रह जोर ||१४/१॥ २६।। ३. बुद्धि औषधी बल तप चार, रस विक्रिय क्षेत्र क्रिया सार । १८॥२६ ।।
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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