________________
कविवर बुलाखीचन्द, बुलाकीदास एव हेमराज
मादि का वर्णन किया गया है । कवि ने पूरव गणित के लिये निम्न संख्या सिखी है
पत्तरि लाख करोरि मित, छप्पन महस करोरि ।
इतने वरष मिलाइय, पूरव संस्था जोरि ||१|| षटकास वर्णन
कवि ने बह काल का वर्णन किया है। ये काल हैं सुषमा सुषमा, सुषमा, मुषमा दुषमा, दुषमा सुषमा, दुखमा एवं दुषमा दुषमा । ये काल चक्र कहलाते हैं
प्रथम तीन काल मोग भूमि काल कहलाते हैं जिसमें मानव कल्पवृक्षों के भाशार पर अपना जीवन व्यतीत करता है । अपनी सम्पूर्ण आवश्यकताएं उन्हीं से पूर्ण करता है । ये कल्पवृक्ष दस प्रकार के बतलाये गये हैं।
सो तरु दश प्रकार बरनये, तिनिके नाम सुनो गुण जयो। सूरज मध्य विभूषा जानि, स्नग अरु ज्योति द्विप गुरण खानि ।
गृह भोजन भाजन पर भास, सुनि अब इनको दान प्रकाश III कल्पवृक्षों से जब इच्छानुसार वस्तुयें मिल जाती है तो जीवन सुख शान्ति से व्यतीत होता है । प्रथम सुषमा सुषमा काल में माता के युगल सन्तान पैदा होती है मौर पैदा होते ही माता पिता की प्रायु समाप्त हो जाती हैं । माता को छींक प्राप्ती है और पिता जंभाई लेता है। यह दोनों ही मृत्यु का सूचक है । पैदा होने वाले युगल प्रगूठा पौकर बन होते हैं । वे पति पत्नि के रूप में रहने लगते हैं । प्रथम काल में तीन दिन में एक बार, दूसरे सुषमा काल में दो दिन में एक बार तथा तीसरे काल में एक दिन छोड़कर आहार ग्रहण करते हैं ।
तीसरे काल का जब अष्टम अंश शेष रहता है तब कल्प वृक्ष नष्ट होने लगते हैं तब कुलकर जन्म लेते हैं जो मनु कहलाते हैं । वे कुलकर मानब समाज को प्राकृतिक विपत्तियों से सचेत करते हैं तथा मनुष्य को जीने की कला सिखलाते हैं ।।
१. लोपे होह कल्प द्रुम ज्योज्यों, कुलकर भाषे मागे त्यौं त्यौं ।
भावी काल बखान यथा, कहै सकल जीवनि सौं कथा ॥२८॥