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________________ कविवर बुलाखीचन्द १७ ये कुलकर चौदह होते है जो एक के बाद दूसर होते रहते है । प्रथम कुलकर का नाम प्रतिश्रत था तथा अन्तिम नाभि थे। चतुर्थ काल कर्म भूमि काल कहलाता है जिसमें मुक्ति का मार्ग खुल जाता है तथा मानब असि मसि कृषि वाणिज्य आदि विद्यानों द्वारा अपनी प्राजीविका चलाता है । एक साथ पैदा होना एवं मरना मिट जाता है । वर्षा होती है खेली होती है लेकिन सदैव सुकाल रहता है । पञ्चम काल दुषमा काल का ही दूसरा नाम है जो २१ हजार वर्ष का होता है। वर्तमान में पञ्चम काल चल रहा है। इस काल में मुक्ति के द्वार बन्द हो जाते हैं । मनुष्य की प्रायु १२० वर्ष की होती है । जो जैसा कर्म करता है उसी के अनुसार प्रायु के तीसरे भाग में अगले भव का बन्ध होता है । शरीर का त्याग करते ही दूसरा शरीर मिल जाता है। पंचम काल में कृषि के माध्यम से शरीर का पोषण होगा 1 सुकाल कम होंगे दुष्काल अधिक । मानव की एक बार के भोजन में भूख नहीं मिटेगी किन्तु दिन में वो तीन बार खाते रहेंगे । मध्यम वर्षा होगी। षष्टम काल इससे भी भंपकर होगा । उसमें सब मर्यादाएं समाप्त हो जावेंगी । यह काल भी २१ हजार वर्ष का होगा । कृषि का विनाश हो जावेगा। एक जीव दूसरे जीव का माहार करेगा। प्रथम तीर्थकर का जन्म उक्त वर्णन के पश्चात् कवि चौदह कुलकरों में से अन्तिम कुलकर नाभि राजा से अपना कथन प्रारम्भ करता है। नाभिराजा विशिष्ट ज्ञान के धारी थे । उनकी रानी का नाम मरुदेवी था। इन्द्र ने जब जाना कि मरुदेवी के जदर से प्रथम तीर्थंकर जन्म लेने वाले हैं तो उसने नगरी को सब तरह से सुसज्जित बनाने का मादेश दिया । मरुदेवी ने एक रात्रि को सोलह स्वप्न देखे । जब उसने नाभि राजा से उनका पूल पूछा तो यह जानकर अत्यधिक प्रसन्नता हुई कि वह प्रथम तीर्थकर की माता बनने वाली है। चैत्र कृष्ण नवमी के शुभ दिन आदिनाथ का जन्म हुमा । देवतानों एवं मानवों ने जिस उत्साह एवं प्रसन्नता के साथ अन्मोत्सव मनाया, कवि में उसका ४७ दोहा
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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