SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 31
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कविवर बुलाखीचन्द, बुलाकीदास एवं हेमराज २२ नेमिनाथ ये २२ वें तीर्थकर थे। द्वारावती के राजा समुद्रविजय पिता एवं रानी शिवादेवी इनकी माता थी ! जब ये विवाह पर जाने के लिये तोरण द्वार पर पहुँचे तो पघुपों की पुकार सुनकर वैराग्य हो गवा तथा मुनि दीक्षा धारण कर ली। और गिरिनार पर्वत पर जाकर तप करने लगे । कार्तिक शुक्ला ११ को इन्हें कैवल्य हो गया ! इनके १५ प्रमुख शिष्य थे जो गरगघर कहलाते थे । अन्त में गिरनार पर्वत से प्राषाढ शुक्ला प्रष्टमी को निर्वाण प्राप्त किया । २३ पाव नाथ पार्श्वनाथ २३ वै तीर्थकर थे जिनका यशोगाम चारों पोर विद्यमान है । वाराणसी मे राजा अश्वसेन के यहां इनका जन्म हुप्रा | वामा देवी इनकी माता थी। इनकी शारीरिक ऊचाई नो हाथ की थी तथा १०० वर्ष की आयु थी। तीर्थकर पद प्राप्त करने के लिये इन्हें ११ पूर्व जन्मों से तपः साधना करनी पड़ी और पौष बुदी ११ को ये अविवाहित रहते हुए जिन दीक्षा धारण ली । मुनि बनने के पश्चात् राजा धनदत्त के यहाँ इनका प्रथम पाहार हुमा । चैत्र बुदी ४ को कैवल्य हुमा । इनके दश गणधर थे 1 अन्त में खड़मावस्था में ही श्रावण शुक्ला सप्तमी के दिन निर्वाण प्राप्त किया। इनका निर्वाण स्थल सम्मेदशिखर का उत्तुंग शिखर माना जाता है। २४ महावीर महावीर इस युग के प्रन्तिम तीर्थकर ये जो पार्श्वनाथ के पश्चात् हुये थे । कुठलपुर नगरी के राजा सिद्धार्थ एवं रानी विशला के पुत्र रूप में चैत्र शुक्ला १३ को इनका जन्म हुप्रा । इनका मन राज्य कार्य में नहीं लगा । ये भी पविवाहित ही रहे । मंगसिर कृष्णा १. के दिन इन्होंने राज्य कार्य परिवार को छोड़कर बन में जाकर मुनि दीक्षा धारण कर ली। उस समय इनकी प्रायु ३० वर्ष की थी। १२ वर्ष तक घोर तपस्या के पश्चात् पैशाख शुक्ला १३ को इन्हें कैवल्य प्राप्त हो गया । वे ३० वर्ष तक लगातार विहार कर जन २ को मार्ग दर्शन देने के पश्चात् फात्तिक कृष्णा अमावस्या के दिन पावापुरी से इन्होंने मोक्ष प्राप्त किया।
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy