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कविवर बुलाखीचन्द
१७ कुयनाम
कुधनाथ १७ वें तीर्थकर थे । जिन्होंने सम्मेदावल से निर्वाण प्राप्त किया । बकरी इनका लांछन माना जाता है । १८ पर नाथ
कुथ नाथ के पश्चात् मरनाथ तीर्थकर हुए । राजा सुदर्शन इनके पिता एवं देवी इनकी माता थी । स्वस्तिक इनका लांछन है । चैत्र शुक्ला पूरिणमा को कैवल्य एवं अगहन सुदी प्रतिपदा को इन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई। १६ मल्लिनाथ
मल्लिनाथ १६ वे तीर्थ कर थे । मिथिला पुरी के राजा कुभ एवं रानी प्रभावती के पुत्र के रूप में इनका जन्म हुग्रा । इनकी काया म्वर्ण के समान निर्मल पी। कुमारफाल के पश्चात् इन्हें जाति स्मरण होने से वैराग्य हो गया । और प्रशोक वृक्ष के नीचे इन्होंने दीना धारण कर ली। ये जीवन पर्यंत अविवाहित रहे । कहापुर के राजा नन्दिसेन को मल्लिनाथ को माहार देने का सर्व प्रथम सौभाग्य प्राप्त हुमा । इनको जन्म, तप और केवल्य एक ही तिथि पौष बदी २ को प्राप्त हुमा । अन्त में फागुण मुदी पंचमी को इन्होंने सम्मेदाचल से निवारण प्राप्त किया । २० मुनिसुव्रत नाथ
___ मल्लिनाथ के पश्चात् २० ने तीर्थकर मुनि सुत्रत नाथ हुये जिनकी कवि ने वन्दना की है । राजमही नगरी के राजा सुमतिराय इनके पिता थे तथा उनकी रानी पयावती माता थी । मुनि दीक्षा लेने के पश्चात् सर्व प्रथम मिथिला के राजा विश्वसेन के यहाँ इनका माहार हुमा । वैशाख बुदी के शुभ दिन उन्हें कैवल्य हा और फागुण बदी एकादशी के दिन सम्मेदशिखर से मोक्ष प्राप्त किया । २१ नमिनाय
, नामिनाथ २१ में तीर्थकर हुये जिनका जन्म वाराणसी नगरी में प्राषाढ़ बदी दशमी के दिन हुआ । देवों एवं मनुष्यों तथा तिर्मम्नों ने भी इनका जन्म महोत्सव मनाया । अन्त में बैशाख बदी १४ को सम्मेदशिखर में निर्माण प्राप्त किया। इनके १३ गणधर थे।