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कविवर बलासो चन्द, बलाकीदास एवं हेमराज
करने लगे । पाटन के वीर राजा के यहाँ एनका प्रथम प्रहार हुप्रा । जब उन्हें कैवल्य हुआ तो उस समय संध्या काल था। देवों द्वारा उनका समवसरण लगाया गया । अन्स में उन्होंने सम्मेदशिखर से महानिर्वासा प्राप्त किया। उस समय वे खडगासन अवस्था में तपः लीन थे । उस दिन र मुबी प्रमालाम ।
विनाश का लछिन सुभर है। १४ अनन्तनाथ
अनन्तनाथ १४ वें तीर्थकर थे जो विमल नाथ के पश्चात् माघ शुक्ला तेरस के गुभ दिन पैदा हुए थे। वे श्वाकु वंशीय क्षत्रिय थे । जन्म में ही तीन ज्ञान के पारी थे उन्हें राज्य सम्पदा अच्छी नहीं लगी इसलिये वैराग्य लेने का निश्चय किया । चैत्र बदी अमावस्या के दिन गृह त्याग कर निन्य साधु बन गये । घोर तपस्या के पश्चात् ज्येष्ठ कृष्णा एकादशी को कैवल्य हो गया । उनके गणधरों की संख्या ५४ थी। सम्मेदशिखर से उन्होंने निर्वाण प्राप्त किया। १५ धर्मनाथ
धर्मनाय १५वें तीर्थकर थे । रतनपुरी के राजा भानु के घर माघ शुक्ला १३ के दिन उनका जन्म हुमा । वे कुम वंशीय अत्रिम थे । जन्म में ही तीन विशिष्ट शान के धारी थे । उनके जन्म के दिन मात्र शुक्ला तेरस थी । वे भी योग धारण कर वन में घोर तपस्या करने लगे । जब उन्हें कैवल्य हुमा तो उनके गणधरों को संख्या ४० थीं । अन्त में सम्मेदशिखर से उन्होंने निर्वाण प्राप्त किया। १६ शान्तिनाथ
इस युग के १६ वें तीर्घकर शान्तिनाथ थे। उनका जन्म गजपुर के राजा विश्वसेन के यहाँ जेठ बुधी १४ को दृष्या । उनकी माता का नाम ऐरादेवी था। वे करवंशी क्षत्रिय थे । उनका शरीर स्वर्गा के समान चमकता था। जब वे राज्य सम्पदा से ऊब गये तो सब को छोड़ कर. दिमम्बर साधु बन गये । जेष्ठ बदी १३ के दिन उन्हें कैवल्य हो गया। वे सर्वंग बन गये । उस समय संध्या काल था। उनके गणधरों की संख्या ३६ थी । अन्त में सम्मेवाचल से ओठ बुदी १४ के दिन निर्वाण प्राप्त किया।