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________________ कविवर बुलाखीचन्द ११ दीक्षा धारण कर ली। कैवल्य प्राप्ति के पश्चात् इन्हें पोष बुढी चतुर्दशी को सम्मेदाचल से निर्वाणा की प्राप्ति हुई और सदा के लिये जन्म मरण के चक्कर से छूट गये। राज्य शासन करते हुए इन्हें वैराग्य उत्पन्न हुआ था । शीतलनाथ का वन ६ पद्य में समाप्त होता है । ११. श्रेयान्स नाथ एक लम्बे अन्तराल के पश्चात् भारत देश के मार्ग खण्ड में सिंघपुरी के राजा विभव के यहाँ श्रेयान्सनाथ का जन्म हुआ। उस दिन फागूणा बुदी एकादशी श्री । इनकी देह का रंग स्वर्ण के समान था । पहिले इन्होंने राज्य सुख भोगा और फिर श्रावण सुदी पूर्णिमा के दिन घरबार त्याग करके दिगम्बरी दीक्षा धारण कर ली सर्व दूषा में बैठकर ध्यानामन्न हुये और मन्त में फागुण सुदी एकादशी को प्रभात वेला मंगल वेला में सर्वज्ञता प्राप्त की । सम्मे दाखल पर ये ध्यानास्य हुये और माघ बुदी श्रमावस के दिन मोक्ष लक्ष्मी को प्राप्त किया । १२ वासुपूज्य स्वामी वासुपूज्य स्वामी १२ चें तीर्थंकर थे। उनका जन्म चंपापुरी नगरी में हुआ था । फागुण बंदि चतुर्दशी उनकी जन्म तिथि मानी जाती है। उनकी माता का नाम जयादेवी था | पर्याप्त समय तक गृहस्थाश्रम में रहने के पश्चात् भादवा सुदी चौदश को उन्होंने गृह त्याग दिया। उसी समय केश लोंच किया मुनि दीक्षा धारण कर ली। सिद्धार्थ पुरी के राजा सुन्दर के यहाँ गाय के दूध का प्रहार किया। कोशास्त्री नगर में वासुपूज्य स्वामी को कैवल्य प्राप्त हुआ। कैवल्य के पश्चात् उनका देश के विविध भागों में विहार हुआ और अन्त में माघ सुदी पचमी को निर्वाण प्राप्त किया । वासुपूज्य तीर्थंकर का भैंसा चिह्न माना गया है । १३ विमलनाथ राजा कृतवर्मा एवं रानी श्यामा माता थी। वे नाथ का शरीर स्वर्ण के समान या । विमल कविखापुरी में जन्म लेने वाले विमलनाथ १३ में तीर्थंकर हैं । उनके पिता इश्वाकु वंशीय क्षत्रिय थे। विमल नाथ भी राज्य सुख से घृणा करने लगे और तपस्या के लिये घर बार छोड़ दिया और अंबु वृक्ष के नीचे तपः सापना
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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