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कविवर बुलाखीचन्द, बुलाकीदास एवं हेमराज स्वस्तिक उनका निशान है । साधु बनने के पश्चात् उन्होंने काफी समय तक तपस्या की थी श्री। अन्त में उन्हें कैवल्य हो गया। अपने समवसरण से उन्होंने शान्ति का सबको सन्देश सुनाया। फागुण बदी षष्टी के शुभ दिन सम्मेदाचल से उन्हें निर्वाण प्राप्त ! ६. चन्द्रप्रभ
पाठ तीर्थकर चन्द्रप्रभ हैं जिनकी स्तुति करते हुये कवि ने लिखा है कि चन्द्रप्रभ का जन्म पौष बदि म्यारस के दिन चन्द्रपुरी के राजा महासेन एवं रानी सछमा के यहाँ हुप्रा । उनके पिता भी इक्वाकु वंशी राजा थे । चन्द्रप्रभ को तीर्थकर प्रवस्था पूर्व के सात जन्मों की लगातार तपः साधना के पश्चात् प्राप्त हुई थी। तीर्थकर चन्नप्रभ को राज्यवैभव, परिवार एवं सम्पदा प्रच्छी नहीं लगी इसलिये फागुण बुदी सप्तमी के दिन उन्होंने वैराग्य धारण कर लिया । नाग वृक्ष के नीचे नैठकर वे ध्यान करने लगे । सर्व प्रथम चन्द्रदत के यहाँ प्राहार हुप्रा । लम्बे समय तक तपः साधना के पश्चात् उन्हें पहिले कैवल्य हा मोर फिर निर्वाश प्राप्त किया। ६. पुष्पदन्त
चन्द्रप्रभ के पश्चात् पुष्पदन्त हुये। जिनका जन्म पोप सुदी एकम को हुप्रा । उनका अन्म स्थान काकन्दी नगर था । सुग्रीव पिता एवं रामा माता का नाम था 1 उनका लांछन मगर है 1 उनके देह की आकृति चन्द्रमा के समान है । भादवा सुदी अष्टमी को पुष्पदन्त ने घर बार छोड़ कर वैराग्य धारण कर लिया तथा सर्व प्रथम गोरस का आहार लिया । तपः साधना के पश्चात् उन्हें अगहन सुदी प्रतिपदा के दिन संध्या समय कंबल्य हा 1 उनके E० गणधर थे जो उनके सन्देश की माया करते थे। उनके समोसरण की लम्बाई पाठ योजन प्रमाण थी । अन्त में सम्मेदाचत से कात्तिक सुदी द्वितीया के दिम निर्वाश प्राप्त किया । १०. शीतलनाम
दसवे तीर्थकर शीतलनाथ स्वामी थे जिनका जन्म भागलपुर के राजा हरिप के यहां हुआ था । शीतसनाय का गरीर नम्वें धनुष का था । पर्याप्त समय तक चनका मन सांसारिक कार्यों में नहीं लगा मोर आसोज सुदी अष्टमी को दिगम्बर