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कविवर बुलाखीचन्द
के दिन उनका कम हुमा सौर उसी ।मि और अप: पान पश्चात् कंवल्य हुप्रा । अन्त में पोष शुक्ला चतुर्दशी को सम्मेदाचल से मोक्ष प्राप्त किया । पभिनन्दन स्वामी का चिल बन्दर है । ५ सुमितनाय
कवि ने अभिनन्दन नाथ की स्तुति के पश्चात् पांचवे तीर्थकर मुमतिनाथ की स्तुति की है सुमति नाथ का प्रादुर्भान जैन सन्तों को प्रतिबोध देने के लिये हमा था । उनका जन्म कौशल देश के राजा मेघराय के यहाँ हुआ था । मंगला उनकी माता का नाम था । जिनका इश्वाकु वंग था 1 वे सुवर्ण वर्ग की देह वाले थे। वैशाल शुक्ला नवमी के दिन उनका जन्म हुपा था । चैत्र शुक्ला एकादशी को उन्होंने राजा सम्पदा परिवार स्त्री एवं पुत्र को छोड़ कर साषु दीक्षा ले ली। घोर तपः साधना एवं विहार के पश्चात् उन्हें कैवल्य हो गया । चे सर्वश बन गये । देवों ने समघसरण की रचना की जहाँ से सुमतिनाथ ने जगत् को सुख शान्ति का सन्देश दिया और अन्त में कायोत्सर्ग भवस्था में निर्वाण प्राप्त किया । ६ पदमप्रभु
___ ये षष्टे तीर्थ कर ये जो सुमति के निर्धारण के पश्चाद हुए 1 इनके पिता कोशाम्बी के राजा थे जिनका नाम घुर या । रानी सुसीमा उनकी माता थी । कमल पद्मप्रभु का निशान है । फागुमा कृष्णा चतुर्थी के दिन उनका जन्म हुमा । पदमप्रभु भी अपनी राज्य सम्पदा को छोड़ कर कात्तिक बुदी तेरस के दिन मुनि दीक्षा धारण करली । वे दिगम्बर बन गये और घोर तपस्या करने लगे 1 पद्मप्रभु ने सर्व प्रथम प्रियगु वृक्ष के नीचे तपस्पा की थी । मंगलपुर के राजा सोमदत्त के यहाँ पापका सर्व प्रथम प्रहार हुया ! बहुत वर्षों तक तप करने के पश्चात् कात्तिक सुदी तेरस के दिन ही कैवल्य हो गया । उस समय गोधूलि का सभम था। सम्मेदाचल से सगासन अवस्था में मापने निर्वाण प्राप्त किया। ७. सुपार्श्वनाथ
सुपाश्यनाथ सातवें तीर्थकर थे जिनका स्मरण मात्र ही दुःखों एवं प्रशान्ति फा विनाशक है । बाराणसी नगरी के राजा के यहाँ जन्म हुमा ! स्वस्तिक प्रापका लोछन है । प्रापकी देह नील वर्ण की घो। जन्म से ही वे तीन ज्ञान के पारी थे।