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________________ कविवर बुलासीचन्द, बुलाकीदास एवं हेमराज संभवनाथ तीसरे तीर्थकर संभवनाथ ये जो अजितनाथ के निर्वाण के लाखों वर्ष पश्चात् हुए । सावित्री नगरी के राजा जितारथ के यहाँ फागुण सुदी पूर्णिमा के दिन उनका जन्म हुमा । उनका वंश भी इश्वाकु वंश था । उनका शरीर हेम वर्ण का था जो ४०० धनुष ऊंचा या । पर्याप्त समय तक राज्य सुख भोगने के पश्चात् छत्र शुक्ला षष्टी को वैराग्य ले लिया। शाल वृक्ष के नीचे वे तपस्या करने लगे मोर पन्त में फात्तिक की पूर्णिमा को मध्याह्न में कैवल्य हो मया । कात्तिक बुदी चतुर्थी को सम्मेवाचल से निर्वाण प्राप्त किया । निर्वाण प्राप्ति के समय वे स्वगासन अवस्था में थे। संभवनाश रहा चिह्न सोड़ा है जो कदि के शब्दों में "तुरंग पवन गति ध्वज प्राकार" है। ४ मिमदन माय अभिनन्दन नाथ चतुर्थ तीर्थकर हैं जिनका जन्म अयोध्या में इश्वाकु वंश के राजा समरराय के यहाँ हुना। उनकी देह स्वर्ण के समान थी । माघ शुक्ला द्वादशी जंबु वृक्ष तले तप लियो, रत्नत्रय प्रत निर्मल कियो। समोसरण श्री जिनवर तनों, जोजन साठे ग्यारह मणों ।।४॥ परननि सकों अलप मोहि ज्ञान, सोझ समें भयो फेवलज्ञान । बहुविधि राज विभूति विलास, ताहि त्यागी पाई सुख राशि ।।५।। सोरठा वाले जोगाभ्यास कियो सिद्ध सम्मेद पर । पहुचे अविचल वास सकल करम वन दहन के ।।६।। दोहा जेष्ठ बदि मावस गरभ, जनम माष सुदि नौमि । मंत्र सुदि पांच सु तप, ध्यान अनि कम होमि ।।७।। माघ महीना शुक्ल पक्ष, दशमी तिथि को ज्ञान । पूस उज्यारी प्रतिपदा, सा दिन प्रमु निर्वाण ॥
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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