________________
प्रवचनसार भाषा ( कवित्त बंध )
तहाँ एक चतुर सिलावट बनाय दई पंडीन की पंकति सु सुगम सुद्वार है । स्योही प्रवचनसार परमागम अगम श्रति गूढ गति अरब सु प्रषिक पंडित सटीक करि फोमल
अपार है ।
प्रकासि दयो
मेरी हू पलप मति तार्क अनुसार है || २ ||
या श्री कुंदकुदाचार्य प्रथम ही ग्रंथ पारंभ विषे मंगलाचरण निमित्त नमस्कार करे है।
X
प्रतिम पाठ
२५७
कति छन्द
सुर नर प्रसुर नाथ पद वंदित घातिय करम मैल सब घोये, भयो अनंत चतुष्टय परगट तारन तरन विश्व तिह्न लोये । प्रातम घरम ध्यान उपदेसक लोकालोक प्रतक्ष जिन जोये 1 अँसे वर्धमान तिथंकर वंदत चरन भरम मल खोये ||११||
चौपाई
बाकी तिर्थंकर तेइस सिद्धि सहित बंदी जगदीश ।
निरमल दरसन ग्यान सुभाव, कंचन सुद्ध प्रगति जिम ताब ।। १२ ।।
X
X X X X
X X
श्रावणाभास मुनि कैसा है य कथन करें है- सर्वया बाईसा जो मुनि संयम भाव भराधि करें तप साधि सिद्धांत सर्व जो परमागम सो परमातम भेद विचार लहे न जयं जो वरसे जग मैं मुनि सौं फुनि सो मुखौ कहियेन कर्वे तास बिनो करियेन कछु सिन्ह ते नहि संभिक ज्ञान फर्व ॥ ९४२ ॥
1. गाया एवं उनको संस्कृत टीका को यहां नहीं दिया गया है। केवल कवित यंत्र भाषा को ही दिया जा रहा है।