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कविवर बुलाखीचन्द, बुलाकीदास एवं हेमराज
सो जिनवर बानी त्रिभुवन मोनी दिव्य वचन मंडार ।
हौ फुनियर पोऊ कवित्त बनाऊं पूरन प्रदचनसार ।।४11 प्रथ कवित्रय नाम छप्पय छन्द
कुदकुद मुनिराज प्रथम गाथा बंध कीनी, गरभित अरय अपार नाम प्रवचन सिन्ह दीन्हो । अमृतचंद फुनि भये ग्यान गुन अधिक विजित गाथा गूळ विचारि सहस्कृत टीका सजित । टीका जुमोड जो परय भनि बिना विबुध को ना लहे सब हेमात्र ष पिः काल सरदह ।।५।।
येसरी छंद पाउ हेमराज कृत टीका पढत पढन सबका हित नौका । गोपि प्ररथ परगट कर दीन्हो सरल घनिका रचि सुख लोन्ही ॥६॥
चौपई टीका तत्व दीपका नाम, हरत प्रग्योन सिमर सब घाम ।
आम दरव कथन अधिकार, पढत प्रगटन ग्यांन अपार ।।७।। प्रथ कवि लघुता कयम- सवैय्या ३१
जैसे कोऊ बालक बिलोंकि ससि विव दुति । कर कर करष उबकि भरे वाथि हो। जैसे मन कायर करन कहै झूम जहाँ तहाँ । धन सूरि हरि हायिन के जथि है । जैसे कर वरन ते हीन बल खीन नर पर, उर उद्यम जलघि पैसि मधि है । तैसे हैं प्रजान अंक मात न पिछानो जाहि,
प्रवचनसार को म पार कैसो कषि है । भय ग्रंथ स्तुति तथा कवि लघुताई कयन सबईया-३१
जैसे करहू पर्वत को मारग विषम लहू दीसत उतंग शुग सैल की सी पार है।