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कविवर बुलाखीचन्द, बुलाकीदास एवं हेमराज मा यथार्थ मुनि पद संयुक्त मुनि की विनायिदि क्रिया जो न करे सो पारित रहत है यह दिखाव है
वोहरा जो मुनिस को वेखि मुनि, कर दोष दुरभाव ।
सो मुनि जी पाय हमा. पानि नन महान it. प्रागै जो जाति भाव करि उत्कृष्ट है ताको जो माप ते होन प्राचर सो अनंत संसारी है यह दिखावे हे--
दोहरा जो मुनि प्रांन मुनीस ये, चाहै प्रादर भाव । सो मुनि भवधि तिरन की, लहै न कबह दाव ।।१४६॥ कहा भयो जो मुनि भयौ हम फुनि मुनिवत पार ।
से भूनि के गर्व ते, लहै न भवधि पार ||१४॥ मन माप दिनाः कः मनि०. है। जो गुण होन की विनयाविक करे तो पारित्र का नास होय यह दिखावै है-दोहरा
जो मुनि गुन उतकिष्ट घर कर जपनि सो संग । सो मिथ्या सुत जगत में, कहिये चारित भंग I.६४|| होन मंगति ते हीनता, गुर ते गुरता जानि ।
सम ते सम गुन पाइये, यह संगति परवानि ॥५०॥ प्राग कुसंगति मन करै है- विलंबित घेव
करके मुनि मागम ठीक, परमारथ जानते नीके। तप साधि कसाय न मान, उपयोग अकंप सुठान ||२|| ममता तजि संजय बार, तिर माप सु भोरनि दार। बब लोकि को सृग द्वान, छिन मैं मुनि बारित मान ।।१५३॥ जिय पाबक के संग पानी, निज सीतसतातहि भांनि ।। मुनि लौकिक लक्षण सौ, बरन जिन भागम तैसी ६५४||
मोट-१४३, १४५, ६५१ संख्या गाया है।