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कविवर बुलाखीचन्द, बुलाकीदास एवं हेमराज
वर्षमान स्तुति-कवित सुर नर असुर नाथ पद बंदन, धातिय करम मैस सब धोये । भयो अनंत चतुष्टय परगट, सान तरन बिरतिह, सोये ।। भातम धरम ध्यान उपदेसक, लोकोलोक प्रतष्य जिन जोये । असे वर्धमान तीर्थकर बंदे घरण भरम मल खोये ।।७।। बाकी तीर्थकर तेईस, सिद्धि सहित बंदू जगदीश । निर्मल दर्शन ज्ञान सुभाव, कंचन शृद्ध मग्नि जिप ताव ।।८।। बंदो शूर प्रवर उवझाय, सकल साघु मुनि बदू पाय । दरमान शान मरन तप बीज, पंचाचार सहित शिव कीब ।।६।।
खेत्राम नमस्कार कयन-चौपाई महा विदेह क्षेत्र है जहां, वरतमान जिन है तसु तहाँ ।
से सबही बंदू समुदाय, जुदै जुवे फुनि बंदू पाय ||१०|| पंच परमेष्ठी समुच्चम, नमस्कार कपन-छप्पय नमति मादि परहंत सिद्ध फुनि सूरन नत पद । उपाध्याय फुनि नमित नमित सव साषु गलत मद ।। यह परम पद पंच ज्ञान परशन यानक नित । तास रूप मनलंबि सुद्ध पारित्र प्रगट हित ।। फुनि है सराग बारिष के गर्राभत अंस खाय मल । सो करम नंष सम त्याग करि, कहू सुक्ष पारिष फल ।।११।। दरशन ज्ञान प्रधान जीव चारित्र चरन धुव । सुही मेद केक थिति वीतराग सराग हव । वीतराग शिव उदय करत अविचल प्रखंड पर । मुर नर असुर विभूति देत चारित्र सराग पर ॥ तासे सराग संसार सार फल वीतराग सुख मोक्ष पर। यह भेद भाव अवलोकि के हेय उपदेय करहु नर ॥१२॥
अग्लिस जो निहवे चारित्र घरम को मावरं । मोहादिक ते दोन साम्य भावनि पर।