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________________ २३८ कविवर बुलाखीचन्द, बुलाकोदास एवं हेमराज बाम अंग वामा बसे, मदा पक्र करि ताहि । अप बसि किवो न काम , कहै जगत पति ताहि ।।६। महा मल्ल मनमथ हियो, ध्यान पनि उरि पाहि । t' प्रकाम मिरमै भये, गनी जगत पति ताहि ।।६।। वेतन तेरे मोम को, दोष प्रगट जगि जोइ । परसत बांकी दीठि ज्यों, पंद एक ते घोह ॥६॥ ग्रीषम बरथा सीत रिति, मुमि तप तपत त्रिकाल | रतनत्रय चिन मोक्ष पर, सहे न करत जंजाल ||७|| रतनत्रय भारी पर, के म मा । पंचम कालि न पाइर्, भवदषि तरन जिहाज ||७१॥ केवल ग्योनी के बचन, केवल शाम समान । वरत पा पहुंचा निरवान ॥७२॥ यों बरत. परिंगह विर्ष, सम्यक विष्टी जीव । न्यों सुत अंतर मेद सौ, पोखं वाय सदीव ||७३n जगत भुजंगम भी सहित, विष सम विष बखानि । रवन ऋय जुगपति हहै, नाग वमनि उरि मानि ॥४४॥ भए मत सौ मत्त चे, ते मति वाले जीव । मही टेक छूट न ज्यों, भरकट मुठि अतीव ।।७५॥ परदरा परमव्य मल, लग्यो चीफन चित । मिटै न मोडे सलिल सौं, मंजन करत सुमित ७६|| जौ व मन उज्जल को, चाहे इहै उपाइ । पर दारा पर द्रव्य सों, उलटि मलस गुनगाइ ।।७७) पोवत देह न छोइए, सगी चित्तरज मूढ । दर्पण के प्रति बिब मल, मांजत मिटै न मुन ॥७॥ करि क सुक्रित तरुन , पीछे फुरै न कोइ । व्यापप्त जरा तिजयरा, अंगरल पंगज होह ॥७९॥ जगत चाक त्रिय कील दिट, मिथ्या माव भार । भाटी पिड सुराइ भनि, भावना विविध प्रकार |
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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