SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 254
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उपदश दोहा शतक २३७ देव ग्रंथ गुरु मंत्र मुनि, तीरथ परत विधान । जाकी जैसी भावना, तैसी सिद्धि निदान ।।५४।। मिलि के कनक कुधातु सौं, भयो बहुत विधि बान । त्यो पुदगल संजोग सौं, जीव भेद परबान ॥१५॥ स्याम रंग से स्पामत, मा पम्नान नही। त्यो चेतन जब जोग से. जाइता लहै न कोइ ।।५६॥ खीर नीर ज्यों मिलि रहे.' ज्यौं कंचन पाखान । त्यों अनादि संजोग भनि, 'पुदगल जीव प्रवान ।।१७।। सिव सुख कारनि करत सह, अप तप बरत बिधान ! कर्म निर्जरा करन को, लोहं सबद प्रमान ॥५॥ तज मर्ष संपप्ति लख, परखं विर्ष मजांन । ज्यों गजमोती तजि गहै, गुंजा भील निदाम ॥५६।। दुर्जन संगति संपदा, देत न सुख दुख मूल | कर प्रधिक उर जगत मैं, ज्यों प्रकाल के फल 1.!! सज्जन लहे न सोभ की, दुर्जन संगति सेत । ज्यों कुंजर दर्पन विर्ष, हीन दिखाई देत ॥६॥ सोरठा- इहै जलधि संसार, पठि मुनि ध्यान जिहान पर । तत छिन पंहुचे पार, प्रपल पवन तप सपत ह ॥६२।। दोहा सज्जन संगति दुर्जन के दोष भयोष लहोत । ज्यों रजनी ससि संग तं, सबै स्यामत खोत ।।१४। जाहि जगत त्यागी कहत, ता सम किरपन कौन । सांची पूरब जनम को, मरत करत हू गौन ॥६॥ खाइ न खरचै लाछि कौं, कहै कृपन जग जांहि । बड़ो पानि वह मरस ही, छोरि चल्यो सब ताहि ॥६५॥ सिव साध परिगह सहित, विषय करत वैराग। उरम सेइ पाहत प्रमी, उत्तमता मुखि काम ॥६क्षा
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy