________________
कविवर बलाखीचन्द, बुलाकीदास एवं हेमराज
१६ समयसार भाषा पं० हेमराज ने प्राचार्य कुन्दकुन्द के सभी प्रमुख ग्रन्थों का माषान्तर किया था। समयसार भाषा की उपलब्धि भभी तक हमें राजस्थान के शास्त्र भण्डारों की अन्य सूचियां बनाते समय उपलब्धि नहीं हुई थी। इस एन्य की एक पाण्डुलिपि नागौर के भट्टारकीय शास्त्र भण्डार में सुरक्षित है ऐसा उल्लेख डा. प्रेमचन्द जैन ने अपनी स्क्रिपाटिव केटासाग माफ भम्युस्कपटस् में पृष्ट 25 पर निम्न प्रकार दी है
"RANTर भा-पं० हेमराज/पत्र संख्या १६४/माकार ११५" ५३" पसा-जीणं/पूर्ण/भाषा हिन्दी (प) लिपि-नागरी पथ संख्या १०६०/रचनाकाल-माघ शुक्ला ५ सं० १७६६iलिपिकाल x।"
उक्त परिचय में रचना काल संवत् १७६६ दिया है जो पडि हेमराज अथवा हेमराज गोदीका के साथ मेल नहीं खाता क्योंकि उक्त दोनों हो कवियों की रचनाये संवत् १७२६ तक मिली है जिसमें ४३ वर्ष का अन्तराला है। इसलिये हो सकता है यह लिपि संदत हो : रामोव ना है।
हेमराज गोदीका (तृतीय)
हेमराज नाम वाले ये तीसरे कवि हैं। ये दिगम्बर जैन खण्डेलवाल थे। गोदीका इनका गोत्र था। ये अध्यात्मी पंडित थे। उस समय सांगानेर क्रान्तिकारियों का नगर था । ममरा भीसा जो तेरहपंप के मुख्य प्राधार स्तंभ थे, वे भी सांगानेर के ही थे तथा उनका पुत्र जोधराज गोदीका भी सांगानेर निवासी थे । यह पूरा गोदीका परिवार ही भट्टारकों के विरुद्ध खड़ा हुमा था भोर उसमें उन्हें आंशिक सफलता भी मिली थी।
हेमराज गोदीका एवं जोधराज गोदीका संभवतः एक ही परिवार के थे तथा एक ही पिता के पुत्र थे। लेकिन दोनों में मतक्य नहीं होने के कारण हेमराज को सांगानेर छोड़कर कामा जाना पड़ा । लेकिन ये दोनों ही विद्वान थे । यह भी संयोग की ही बात है कि दोनों ने एक ही संवत् अर्थात् सं० १७२४ में प्रवचनसार की पब टीका समाप्त की थी। हेमराज सांगानेर से कामां नगर पाये जबकि जोषराज सांगानेर में ही अपनी साहित्यिक सेवा करते रहे ।