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हेमराज
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१३ सेहिणी व्रत कथा
हेमराजःने कुछ कथा कृतियों की भी रचना की थी। रोहिणी व्रत कथा को उसने संवत् १७४२ में समाप्त की थी। इस कथा की एक प्रति वि० जैन मंदिर बोरसली कोटा में संग्रहीत है। कथा का अन्तिम भाग निम्न प्रकार है
रोहणी कथा संपूरण भई, क्यों पूरय परगासी गई। हेमराज है कही विचार, पुरा सकल शास्त्र अवधार । ज्यों व्रत फल.... मैं नाही, सो विषि प्रेष धौपई सही।
मगर वीरपुर लोग प्रबीन, यया बान सिमको मन लोन ॥
कथा के उक्त अंश से पता चलता है कि इसकी रचना वीरपुर में की गयी श्री। 'बीरपुर' प्रागरा के पास पास ही कोई पाम होना चाहिये ।।
१४ नन्दीबर कषा
हेमराज की दूसरी कथा कृति नन्दीश्वर कया है। कवि ने इसे परावा नमर में निबद्ध किया था। वहीं जैनों की प्रच्छी बस्ती थी तथा गेन पुरानों को सुनने में उनकी विशेष रुचि थी । कथा का मन्तिम मंश निम्न प्रकार है
यह व्रत-नन्दीश्वर को कथा, हेमराज परगासी यथा । सहर इटायो उत्तम पान, भावा कर ममं सुभ प्यान | सुने सरा से मैन पुरान, पुरो लोक को राजे मान । लिहिण सुमो धर्म सम्बान, कोनी कपा चौपई बंध ।
१५ राजमती चुनरी इस लघु कृति की एक प्रति फतेहपुर (शेखावाटी) के दिगः जैन मन्दिर के शास्व भण्डार में साग्रहीत है।'
१रेखिये-राजस्थान के जैन शास्त्र भगारों को ग्रंथ सूची-भाग पंचम पृ. सं. ४॥
पृष्ठ सं. १९९५