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________________ २१२ कविवर बलातोउन्ट, बलाकीदास एवं हेमराज वृजिनवाणी संग्रह में प्रकाशित हो चुकी है। पूजा में पहिले प्रष्ट पूजा और फिर जयमाल है । 'कवि के गुरु संसार के भोगों से विरक्त होरर मोक्ष के लिये तपस्या करते हैं। वे भी भगवान जिम्मा के गुणों का नित्य प्रति जाप करते है-- दीपक उपोत समास अगभग, ससा पूर्व सया। तम नाश ज्ञान उजास स्वामी, मोहि मोह न हो कहा। भव भोग तन बैराग्यधार, निहार शिव पद तपत है। तिहं जगसनाय अधार साधु मपून नित गुन जपत है ।।६।। पञ्च परमेष्ठी का साधु ही गुरु है । मुनि भी उसी का नाम है। वे रागदेष को दूर कर दया का पालन करते हैं। तीनों लोक उनके सामने प्रकट रहते हैं पे चारों प्राराधनाओं के समूह हैं । वे पाच महावतों का कठोरता से पालन करते है मौर छहों द्रव्यों को जानते हैं। उनका मन सात भंगों के पालन में लगा रहता है पौर उन्हें माठों ऋमियां प्राप्त हो जाती है । एक व्या पाले मुनिराचा, राग व हरमपरं । तीनों लोक प्रगट सब देखें, चारो पाराधन निकरं । पंच महाव्रत युदर धार, छहों परस पाने सहित । सात भंग पानी मन लागे, पावें पाठडि समितं ॥ गुरुपूजा की एक प्रति फतेहपुर (शेखावाटी) ने दिग जैन मन्दिर के सास्त्र मपचार में गुटका संख्या ७ में संग्रहीत है 1 १२ नैमिराजमति जखडी कविवर हेमराज लघु कृतियों की रचना करने में रुचि भी रखते थे। नेमिराजमति जखड़ी ऐसी ही एक लघु रचना है जिसमें नेमि राबुल का विरह वर्णन किया गया है। जखडी की एक प्रति जयपुर के बीचन्द जी के मन्दिर के शास्त्र भण्डार में संग्रहीत १२४वें गुटके में लिपिबद्ध है। इसकी प्रति देहली में तिलोकचन्द पटवारी नाकसू वाले ने संवत् १७८२ में की थी। १ राजस्थान के जैन शास्त्र भारों की ग्रंथ सूची-भाग ३ पृष्ठ संख्या १५२.
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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