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________________ ইম २२१ हेमराज को बोनती, सुमियो सुरुनि समार। यह भाषा नयषक की, रवि सुबुद्धि उनमाम ॥४॥ सतरसे बीस को, संबत फागुण मास । उजल तिथि पशमी बिहाँ फोनो बसन जिलाम ! प्रागरा में उन दिनों पं. नारायणदास थे । जो खरतर गच्छ के जिनप्रभसूरि के प्रशिष्य एवं उपाध्याय लब्धिरंग के शिष्य थे । हेमराज ने पं. नारायणदास से नयचक्र की भाषा करने के लिये प्रार्थना की । इसके पश्चात् हेमराज ने पं० नारायणदास की सहायता से नयचक्र की गद्य में भामा किया। जिसका काम प्रकार किया हैसेहरा- सिरीमास गछ खरतर, जिनप्रभ सूरि संतानि । लवधि रंग जवझाय मुनि, तिनके सिष्य सजानि ।। पियुष नारायणरास सो.. यह प्ररण हम कीन । न्यौ नयत्रक सटीक हू, पद सर्व परवीन ॥२॥ तिम्है प्रसन हक कही, भली भली यह बात । सब हमहू अनिम कियो, रबी बचनिका भात ।३।। प्रस्तुत ग्रन्थ की एक पाण्डुलिपि संवत् १७६० भादवा दी भृगुवासर को वेषम गांव में लिपिबद्ध की हुई जयपुर के पांडे लणकरण बी के मन्दिर में उपलब्ध है। मयचक भाषा का प्रादि भाग निम्न प्रकार है बंदी भी जिन के वचन, स्याद्वाब भय मूल । ताहि सनत अनुभवत हो, होश मिथ्यास निरमूल ।।१।। निहर्च अर वियहार नय, तिनके भेद अनंत । तिम्ह में कछु इक बरग हो, गाम भेव विरतंत ॥२॥ ११ गुरुपूजा हेमराज ने माध्यात्मिक साहित्य के अतिरिक्त पूजा साहित्य भी लिखा था। उनके द्वारा रचित गुरुपूजा पं० पन्नालाल बाकलीवात द्वारा प्रकाशित
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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