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________________ २२० कविवर लाखोचन्द, बुलाकीदास एवं हेमराज शब्द समभिरूड एवं एवंभूत के भेद से सात प्रकार के हैं। इन नयों का बहुत ही विस्तृत किन्तु सरल एवं बोधगम्य परिचय दिया गया है। हेमराज ने बिना किसी गाथाओं को उद्धृत किये हुये ना साख है. का दार्शनिक विषय है लेकिन हेमराज ने उसे एकदम सरल बना दिया है। एक उदाहरण देखिये – (१) वहाँ सर्व नय को मूल दोइ । एक द्रव्यायिक एक पर्यायायिक | इनही का उच्चतर भेद सात और है सां लिखिये है। १. जंगम, २ संग्रह ३ व्यवहार ४. ऋजुसूत्र ५. शब्द, ६. समभिरूड एवं ७ एवंभूत। इस तरह ए सात नय दीय मूल भरु सात ए सवं मिलि तब नय हुई । इति नवाधिकार | इनको मागं यथा सम्बन्धे लिखिये होगी । नय ही को मंगू ले करी वस्तु को अनेक विकल्प लिए कहनों सु उप नय कहिये सो उपनय तीनि भेद व्यवहार हो के विधे संभवे सो लिखिये है । सद्भूत व्यवहार प्रसद्भूतव्यवहार, उपचरत सद्भूत व्यवहार एवं उप नम का तीन मेद । अब पूर्वोक्त नय का विस्तार परणे भेद लिखिए है । X X X X (२) तिहृो प्रथम निश्वये नय हूंती व्यवहार नय तिहां वस्तु को जो प्रभेद पर बतावै सो निश्चय । श्ररू वस्तु को भेद पर बताई सो व्यवहार नय | ति पहिली जो निश्चय नय तिस के दोय भेद एक शुद्ध नय दूजी अशुद्ध नय । तिहां जो निरुपाषि रूप सो सुध निश्चय नम जैसे केवलग्यानादयो जीव भर जो उपाधि करि संयुक्त है सौ सुष निश्चय नय जैसे मति ज्ञानोदय जीव । एवं निश्चय का दोय भेव जांणचा । पृष्ठ १७ IND **** ---- X उक्त वो उदाहरणों से पता चलता है कि नयचक्र की भाषा राजस्थानी प्रभावित श्रवस्य है लेकिन उसका स्वरूप एवं शैली दोनों ही परिस्कृत है । सैद्धान्तिक बातों के वर्णन में ऐसा सरल एवं किन्तु परिस्कृत भाषा का प्रयोग प्रवश्य ही प्रशंसनीय है । प्रस्तुत रचना को हेमराज ने संवत् १७२६ में पूर्ण किया था। जिसका उल्लेख कवि ने ग्रन्थ के अन्त में निम्न प्रकार किया है
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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