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________________ हेमराज ६ सुगन्ध कामी व्रत कथा सुगन्ध दशमी यस भारी शुगल ' सपी के दिन रखा जाता है । यह व्रत १० वर्ष तक किमा जाता है और कर चार सा शो रसा जाता है। समाज में इसका अत्यधिक महत्व है । शास्त्र भण्डारों में बहुत सी पाण्डु लिपियां इसी व्रत के उद्यापन के उपलक्ष में मेंट स्वरूप दी हुई संग्रहीत है। इस दिन सभी मन्दिरों में धूप खेई जाती है। इस व्रत को भीवन में सफलता पूर्वक करने से दुर्गन्ध युक्त सरीर भी सुगन्धित बन गया था यही इस व्रत का महात्म्य है । इस कथा के मूल लेखक विश्वभूषण है जिसको हिन्धी पद्य में हेमराज ने रचना की थी। रचना स्थान गहेली नगर था जिसका कवि ने निम्न प्रकार उल्लेख किया है । प्रत सुगन्ध वसमी विल्यात, अतिसुगन्ध सौरभसा गत । पह अस नारि पुरुष जो करे, तो दुल संकट यह परे ।।३६।। सहर गहेलो उत्तिम बास, गम को करे प्रकास । सब भावक प्रत संयम घर, गाम पूजा सो पाक्षिक हरे ॥३७।। हेमराज कवियन यो कही. विस्मभूषन परफासी सहो । मन वन काइ सुन बो कोड, सो मर स्वर्ग ममरपति होई ॥३८॥ यह छोटी सी कृति है जिसमें ३८ पद्य हैं। इसकी एक पांडुलिपि जयपुर के पटोपी के दिगम्बर जैन मन्दिर में संग्रहीत है। पाण्डुलिपि संवत् १९८५ की है। पाहुलिपि भिण्ड नगर के रामसहाय में की थी। १० नयचक भाषा नयचक का दूसरा नाम मालाप पद्धति है। इसके मूलका पाचार्य देवसेन है जिनका समय संवत् १६० अर्थात् १०वीं शताम्दि माना जाता है । नयचक मूल रचना प्राकृत भाषा में है। इसमें प्रारम्भ में छह द्रव्यों का (जोव, पुदास, धर्म, प्रधर्म, प्राकाश और काला द्रव्य, गुण और पर्याय की पपेक्षा वर्णन किया गया है। इसके पश्चात् द्रव्य स्वभाव का कथन किया गया है। फिर सात नयों का जिनके नाम से यह रचना विख्यात है वर्णन मिलता है 1 नंगम, संग्रह, व्यवहार, घुसूत्र
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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