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________________ हेमराज २२५ हेमराज की अब तक तीन कृतियाँ प्राप्त हो चुकी है जिनके नाम प्रकार हैं--- प्रवचनसार हिन्दी पद्य-रचनाकाल संवत् १७२४ संवत् १७२५ उपदेश दोहा शतक- गणितसार गड़ - उक्त रचनाओं का विस्तृत परिचय निम्न प्रकार है १५ प्रवचनसार माषा (पद्य) प्रथधनसार का पठन पाठन समाज में प्रारम्भ में ही लोकप्रिय रहा है । प्राचार्य अमृतचन्द्र एवं जयसेन प्रभृति प्राचार्यों ने गाथायों पर संस्कृत में टीका लिखी है। हिन्दी भाषा में सर्व प्रथम संवत १७०६ में मागरा निवासी हेमराज अग्रवाल ने गद्य पध दोनो में टीका लिखी थी। हेमराज की गद्यात्मक टीका बहुत लोकप्रिय रही और उसी के प्राधार पर कामांगढ़ | राजस्थान) निवासी हेमराज खण्डेलवाल ने एफ और हिन्दी पद्य टीका लिखी। जिसके पद्यों की संख्या १००५ है। हेमराज ने अपना परिचय देते हुये निम्न पंक्तियां लिखी हैं सर्वया इकतीसा हेमराज श्रावक खण्डेलवाल जाति गोत भावसा प्रगट व्यौक मोदीका बखानिये । प्रषचनसार प्रति सुन्दर सटीक देखि कोने हैं कवित्त ते छवित्त कम जानीय । मेरी यक वीनती विवध कवितनिसों, माल बुद्धि कवि को न दोष उर पानीय । जहाँ जहाँ छंद मोर मारय मधिक होम तहां शुख करि प्रवान ग्यान ठानोये पोहा--- सांगानेर सुर्धान को हेमराज असमान । प्रब अपनी इन्छा सहित, बस कामगवान ॥६२२ ॥ कामागव सुखसुसह, इति भीत नहि पाय ।। कषित बंध प्रषचन कीयो, पूरन तहाँ बनाप ||३|| उस समय कामां में अध्यात्म सैली यी उसी में प्रवचनसार की पर्चा स्वाध्याय होती थी।
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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