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________________ कविवर हेमराज २११ इसको एक पद्य टीफा वाली पाण्डुलिपि उपलब्ध हुई है जिसका परिषय निम्न प्रकार है हेमराज ने प्रघचनसार का पद्यानुवाद भी इसी दिन समाप्त किया जिस दिन उसकी गद्य टीका पूर्ण की थी जिससे ज्ञात होता है कि उसने प्रवचनसार पर गद्य पद्य टीका एक ही साथ की थी। लेकिन जब उसकी गद्य टीका को पचासों पाण्डुलिपियां उपलब्ध होती है तब प्रवचनसार पद्म टीका की अभी तक पाण्डुलिपि उपलब्ध न होवे यह बात समझना कठिन लगता है । इसका उत्तर एक यह भी दिया जा संकता है कि खण्डेलवाल जातीय दूसरे हेमराज ने भी पद्यानुवाद लिखा है इसलिये प्रागरा निवासी हेमराज के पद्यानुवाद को कम लोकप्रियता प्राप्त हो सकी। पद्य टीका में ४३८ पद्य है जिसमें अन्तिम ११ पद्य तो वे ही हैं जो कवि ने प्रवचनसार गद्य टीका के अन्त में लिस्बे हैं। प्रस्तुत कृति का प्रारम्भिक अंश निम्न प्रकार हैअप्पय स्वयं सिद्ध करसार कर निज करम सरम निषि, पापं करण स्वरूप होय सापन साथै विधि । संमरचना पर पापको प्राप समप्प । प्रसारव प्रापत मापको कर थिर थप्पै । अधकरण होय भाषारनिन वरतं पूरण ब्रह्म पर। षट निषिद्वारिकामय विधि रहित विविध येक अजर अमर ॥१।। चोहा- महासत्व महनीय पह, महापाम गुणधाम । चिदानंद परमातमा, बंदू रमता राम ।।२।। कुनय धमन सुवरनि प्रवनि, रमिनि स्यात पर शुद्ध । जिनवानी मानी मुनिय, घर मैं करोतु सुबुद्धि ।।३।। चोप- पंच इष्ट के पद वंदौ, सत्यरूप गुरगुण प्रभिनंदों। प्रवचन प्रथ को टीका, बालबोध भाषा सपनीका ।।४। प्रवचनसार के तीन अधिकारों में से प्रथम अधिकार में २३२ पद्य, तथा शेष २०६ पद्यों में दूसरा एवं तीसरा अधिकार है। भाषा प्रत्यधिक सरल, सुबोध एवं मधुर है। प्रवचनसार के गुळ विषय को कवि ने बहुत ही सरल शब्दों में समझाया है। कोई भी पाठक उसे हृदयंगम कर सकता है।
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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