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________________ २१२ कविवर बुलाखीचन्द, बुलाकोदास एवं हेमराज प्रवचनसार पद्य टीका को एक पाण्डुलिपि जयपुर के बधीचन्द जी के शास्त्र भण्डार में संग्रहीत है। इसमें ३४ पद्य हैं तया अन्तिम पुस्तिका इस प्रकार है इति श्री प्रवचनसार भाषा पांडे हेमराज कृत संपूर्ण । लिखतं दलसुख लुहाड़िया लिखी सगाईचपुर मध्ये लिसा । ३ भक्तामर स्तोत्र भाषा (पत्र) भक्तामर स्तोत्र सर्वाधिक लोकप्रिय जैन स्तोत्र है। मूल स्तोत्र माचार्य मानतुग द्वारा विरचित है जिसमें ४८ पद्य है। समाज का अधिकांश भाग इसका प्रतिदिन पाठ करता है। हजारों महिलाएं जब तक इसको नहीं सुन लेती, भोजन तक नहीं करती। भक्तामर स्तोत्र पर अब तक ७० से भी अधिक विद्वानों ने पद्यानुवाद किया लेकिन "शिकार में काफल इस लेख में मक्तामर पर उपलब्ध हिन्दी गद्य टीकाकारों का कोई उल्लेख नहीं किया । भक्तामर स्तोत्र पर हिन्दी पद्यानुवाद पांडे हेमराज का मिलता है जो समाज में सर्वाधिक लोकप्रिय है । दि० जन मन्दिर कामा के शास्त्र भण्डार में स्वयं हेमराज पांड्या की पाण्डुलिपि संग्रहीत है जिसका लेखन-कास सं० १७२७ है । इस पाण्डुलिपि में २६ पत्र हैं। पांडे हेमराज ने पद्यानुवाद जितना सुन्दर एवं सरल किया है उतना अन्य कवियों के पद्यानुवाद नहीं है। एक पद्य का अनुवाद देखिये मो माँ शक्तिहीन अति कर भक्ति भाववश कछ नहीं आ क्यों भूगि मिज-सुस पालम हेतु मृगपति सन्मुख माय अचेत ॥५॥ अन्तिम पञ्च में कवि ने अपने नाम का निम्न प्रकार उल्लेख किया है भाषा भक्तामर कियो, हेमराज हित हेत । जो नर पढे सुभावसों, से पावै शिवनेत ॥४२॥ १ देखिये "तीर्थकर" में प्रकाशित-पं. कमलकुमारजी शास्त्री का लेण-पृ. १६७-७. २ राजस्थान के जैन सास्त्र भण्डारों को ग्रन्थ सूची भाग-पंचम-पृ० ७४७.
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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