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________________ कविवर बुलाखीचन्द वनपुर कौनसा नगर था तथा वर्तमान में उसका क्या नाम है यह खोज का विषय है किन्तु हमारे विचार में यह नगर मथुरा के पास होना चाहिये क्योंकि जैसवाल जैन समाज त्रिभुवनगिरी को छोड़ कर मथुरा श्रा चुका वा । यहीं पर जम्बू स्वामी को कैवल्य एवं निर्वाण की प्राप्ति हुई थी इसलिये वृन्दावन का नाम हो वर्धनपुर होना चाहिये | वृन्दावन मथुरा के समीप ही है और कभी वहाँ जैसवाल जैन समाज की अच्छी संख्या रही होगी । 1 चचनकोश का महात्म्य + कवि के अनुसार बचनको कोई साधारण रचना नहीं है किन्तु यह एक ऐसा ग्रंथ है जिसको पढ़ने से मिस्याज्ञान दूर हो जाता है तथा जिनवाणी के अतिरिक्त अन्य किसी की बात अच्छी नहीं लगती । स्वाध्यायान्ति होती है जो स्त्री पुरुष इसका रुचि पूर्वक श्रवन करते हैं उनके घर में लक्ष्मी का निवास हो जाता है। जो इसका मनन करते हैं उनके किसी प्रकार का भी रोग नहीं माता । बचनकोश की तो इतनी अधिक महिमा है जिसका वर्णन करना भी कवि के लिए संभव नहीं हैं। क्योंकि उसके पठन पाठन एवं श्रवण मात्र से भी बुद्धि एवं बल दोनों की वृद्धि होती है तथा उसे मान सम्मान भी मिलता है ।" बचनकोश विलास सदृश रचना है जिसमें गद्य पद्य वाली रचनाओं का संग्रह रहता है। लेकिन बचनकोश को एक यह विशेषता है कि इसमें कवि ने कोश के १. छांडि सिवन गिरी उठि धाइयो, जैसवाल बाल मानियो । प्रभु बरसन लइए नविहंड, दुरमति करि मारि सत खंड ॥ ७१ ॥ जम्बू स्वामि भयो निरवान पाईं पंचम गति भगवान । जैसवाल रहे तिही ठाम, मन मान्यो जु करइ कॉम ।। ७३ ।। २. विनसे साधु पठत सिक्यात सांची लये न परमत बात क्षयोपशम को कारण यही बचनकोश प्रगट्यो यह मही ॥ ६० ॥ भवन करें कवि से मरनारि, लक्ष्मी हो सुभग निरवार । लक्ष्मी होइ, न रोग अस्कुल, या पर्व होइ पति जुमलो ।। ८१ ।। जिनवानी की करिति घनी, कहाँ लो बनि सके नहीं मनीं । सुना न पायें पार, मांनि सकति लु बुधि बलसार ।। ६२ ।।
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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