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हेमराज
वाविवर हेमराज इस पुष्प के तीसरे कवि हैं जिनका यहाँ परिचय दिया जा रहा है। समय की दृष्टि से हेमराज बुलाखीचन्द एवं बुलाकीदास बोनों ही कवियों से पूर्व कालिक हैं । मिश्रबन्धु विनोद ने इनका समय संवत् १६६० से प्रारम्भ किया है लेकिन उसका कोई प्राधार मष्टी दिया। इन्होंने हेमराज एवं पाण्डे हेमराज के नाम से दो कवियों का अलग २ सल्लेख किया है। हेमराज की रचनाओं के नामों में नयचक, भक्तामर भाषा एवं पंचाशिका वनिका के नाम दिये है तथा पाण्डे हेमराज के ग्रन्थों में प्रवचनसार टीका, पंचास्तिकाय टीका, भक्तामर भाषा, गोम्मटसार भाषा, नयचक्र वचनिका एवं सिप्तपट चौरासी बोल, ग्रन्थों के नाम दिये हैं। इन ग्रन्थों का विवरण देते हुये लिखा है कि ये रूपचन्द्र के शिष्य थे तथा गद्य हिन्दी के मच्छे लेखक थे । नयचन्द्र भाषा एवं भक्तामर भाषा के नाम दोनों में समान है।
डा० कामताप्रसाद जी ने अपने “हिन्दी जैन साहित्य का संक्षिप्त इतिहास" में हेमराज की प्रवचनसार टीका, पम्वास्तिकाय टीका एवं भक्तामर भाषा इन तीन कृतियों का ही उल्लेख किया है। इसी पुस्तक के प्रागे हेमराज के नाम से ही गोम्मटसार एवं नयचक्र बनिका का नामोलेल्ख किया है । डा० नेमीचन्द्र शास्त्री ने हेम कवि की केवल एक कृति छन्दमालिका (सं० १७०६) का ही उल्लेख किया है 1 डा० प्रेमसागर जैन ने हेमराब का रचना समय विक्रम संवत् १७०३ से १७३०
१. मिश्रबन्धु विनोद - पृष्ठ संख्या २५२ (४३५) २. वही
, २७६ (५१३/१) ३. हिन्दी जैन साहित्य का संक्षिप्त इतिहास - पृष्ठ सं. १३१ ४. हिन्दी जन साहित्य परिशीलन - पृष्ठ सं. २३८ । ५. हिन्वी भक्ति काव्य पार जैन कवि - पृष्ठ सं. २१४.१६