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कविवर बुलाखीचन्द, बुलाकीदास एवं हेमराज
अरु नर तन गुरु धन्य है, जाके वचन प्रभाव । संस्कृत ते भाषा रच्यो, पाइ सबब प्ररथाव ।।१७।। वीरनाथ जिन धन्य हैं, जाके चरन प्रसाद । यह पुरान पूरन भयौं, सुषदाइक शिव प्रादि ॥१८॥
अप ग्रंथ छंच प्रमाण कथम सवैया । छप्पे एक करको प्रठार इकतीसे बीस चालीसह एक मोरठे पर मानिये । छयालीस तेईसो पाचही पचीसी गनिव्वैही मुजंग छंद जनी जग जानिये ।। तीनस सिसौडिल्ल नौसंतीस दोहा भनि ढाईस सतान सु चौपाई बषानिये । सारे इक ठौर करि ठानिये बुलाकीदास एकादश पंचसे हजार चार प्रानिये |६||
प्रय सोक संस्था कथन- दोहा संख्या श्लोक मनुष्टपी, गनिये ग्रन्थ सपाइ । सप्त सहन षट सतक फुनि, पचपन अधिक मिलाइ ।। १००।
प्रथ संवत मितो–चोहा । संवत सतरहसौ घउन, सुदि प्रसाद तिथि दोज । पुष्प रित गुरुवार कौं, कीन्यों भारत चोज ।।१०१।।
इति श्रीमन्महापशीलाभरणभूषित जैनी नामांकितायां भारत भाषायां लाला बुलाकीदास विरचितायां पांडवोपसर्गसहन प्रयकेवलोत्पत्ति सिद्धिगमन द्वय सर्वार्थ सिद्धि प्राप्ति वर्णनोनाममद्धि प्रदिशातितमः प्रभावः ।।२६।।
इति श्री बुलाकीदास कृत भाषा पांडवपुराण महाभारत माम सम्पूर्णम् ।।
मिती श्रावणमासे कृष्ण पक्षे तिम्रो १४ वार दीतवार सम्बत् १९०५ का दसकत नाथुलाल पांडया का । लिषो गयो बड़े मंदिर वास्तै ।।