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________________ २०२ कविवर बुलाखीचन्द, बुलाकीदास एवं हेमराज तक का दिया है। इसके साथ ही प्रवचनसार भाषा टीका, परमात्मप्रकाश, गोम्मटसार कर्मकांड, पंचास्तिकाय भाषा, नयचक्र भाषा टीका, प्रवचनसार ( १ ) सितपट चौरासी बोल, भक्तामर भाषा, हितोपदेश बावनी, उपदेश दोहा शतक एवं गुरुपूजा का उल्लेख किया है । राजस्थान के जन कारों में, पाण्डे हेमराज, हेमराज साह, हेमराज एवं मुनि हेमराज के नाम से अब तक २० से भी अधिक कृतियों की पाण्डुलिपियाँ उपलब्ध हुई हैं। लेकिन नाम साम्य की दृष्टि से सभी कृतियों को आगरा निवासी गज की हासी गयी। इस दृष्टि से पं. परमानन्द जी शास्त्री ने श्रनेकान्त देहली में प्रकाशित अपने एक लेख "हेमराज नाम के दो विद्वान्" में इस भूल की ओर विद्वानों का ध्यान आकृष्ट किया क्योंकि इसके पूर्व पं. नाथूरामजी प्रेमी, डा. कामताप्रसाद जी भादि सभी विद्वान् एक ही हेमराज कवि मानने लगे थे । अभी जब मैंने अकादमी के छुट्टे भाग के लिये हेमराज की कृतियों का संकलन किया तथा पंडित परमानन्द जी एवं अन्य विद्वानों द्वारा लिखित सामग्री का प्रध्ययन 'किया तो मुझे भी अपनी भूल मालूम हुई क्योंकि राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारों की ग्रंथ सूचियों में सभी रचनाओं को एक ही हेमराज के नाम से अंकित कर दिया गया । वास्तव में एक ही युग में हेमराज नाम के एक से अधिक उन सभी ने साहित्य निर्माण में अपना योग दिया । १७वीं एवं १०वीं शताब्दि में हिन्दी जैन कवियों के लिये भागरा एक महत्वपूर्ण केन्द्र रहा जहाँ पचासों जैन कवियों ने हिन्दी में सैकड़ों रचनाओं को निवद्ध करने का गौरव प्राप्त किया। विद्वान् हुये पौर "हेमराज नाम वाले चार कवि हमारी खोज एवं शोध के अनुसार हेमराज नाम के चार कवि हो गये हैं जिन्होंने हेमराज नाम से ही काव्य रचना की थी। इन चारों हेमराजों के नाम निम्न प्रकार है- १. मुनि हेमराज २. पांडे हेमराज ३. साह हेमराज ४ हेमराज गोवीका
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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