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कविवर बुलाखीचन्द, बुलाकीदास एवं हेमराज
जिम बाल ग्रहण उडगन करोति, जलसिंधु प्रमानत भेक पोति । तिम प्रय कर्यो निज धुखि जोग, नहिं दोष ग्रहत बर दक्ष लोग ।।२।। जे नर असंत पर दोष संघ, तिम संग म हमको काज रंच । । विष मय पियूष ते नरक राहि, लहि पाप महा मरि नरक अाहि ।।१३।। जे साधु महा पर फज्ज रक्ष, पर जद्यपि देवहि दोष सन्छ । नहि धारहिं तदपि विकारि भाव, ते होउ महाजस हम सहाउ ||४|| जिम पंद सरद उस बीच, प्रति सोभ करत द निज मरीच।। पर गुन समूह तिम संत देषि, निरघोष करत उपमां विसेपि ।।८।। राचि में विचित्र पावन पुरान, नहिं बछौं नर सर सुष निषांन । इस भक्ति तना फल होहु एहु. पद मुक्ति परम सुब रास देहु ॥८६।। पुनरुक्ति युक्त लछन सुखंद, जहाँ भूल्यो वरनत वर्ण बिंदु । तहाँ सोषि पढौ जे बुध प्रानिंद नहि मिंट करत : साप 'द ।।६।। अलंकार गनागन छंद भेद, नहि जानौं रचक अलप वेद । काल भूलि देषि इस ग्रंथ मद्धि, मति कोप करी कवि विपुल बुद्धि ।।८८11
प्रथ मूल प्राचार्य
सवैया संगन ले मूलसंगी पद्यनंदि नाम भए ताके, पट्ट सबलादिकीरत बषानियें । कोरति मुवन तात ताक भाए चंदार रि, कीरति विजय सुतास पट्ट परवानीयें ।। ताके पट्ट सुभचंद सुजस अनंद कंद, पडिन पुरान परकास कर मानीये । मति को उदीत तास पाइ के बुलाकीदास, भारतविलास रास भाषा करि जानिये ।।६।।
अथ बादशाह वंस वर्णन
सर्वा यंस मुगलाने मांहि दिल्ली पति पातिसाहि,तिमिरलिंग मोर सुत बाबर सुभयो है। साको है हिमाऊ सुत ताही त प्रकच्छ र है, जहाँगीर ताक धीर साहिजहां व्या है ।। ताजमहल अंगनां प्रगज उतंग महायलो, अपरंग साहि सावित ले जयौ है । ताकी छत्र छांह पाह सुमति के उदै पाइ भारत राइ भाषा जैनी जस लयो है | |