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________________ पाण्डवपुराण तहां पाडव कौरव रुदन ठामि बहु सोच करत जग सुन्य मांनि । दुख मोहिं एम बीती सुरात, रवि आइ बहुरि कोन्यो प्रभात ।। २८३॥ हि भांति जीव संसार माँहि नित काल भ्रम सिर होत नाहि । ट्रिमी सुचपल चपला समान संध्या प्रभासम मायु जान || २६४ ।। सुतबंधु सुखादिक छिनक संग, इम जाति रहो नि धर्म संग | बर बुद्धि गंतसुत ब्रह्मचार, सुखरिद्धि बार सुर सदन सार ||२५|| फुनि पछ छीन कौरव कुराह, बल हीन दीन हुँ रुदन भाइ । अरु धर्म तनुत्र जयवंत संस, जग मोहिं प्रगट जस नीतिवंत ।। २६६ ।। कृत पूर्व धर्म सुभ समं दाह, दिन धर्म परम दुख भरम पाई । जिन धर्म समान न और रत्न, जैनी सदीद सुनि धरत जन || २८७।। इति श्रीमन्महाशोलाभरणभूषित जैनी नामांकितायां भारतभाषायां बुलाकीदास विरचितायां गांगेय संन्यास ग्रहण पंचस्व प्राप्ति पंचम स्वर्ग गमन वर्णनो नाम विशतिम प्रभवः । X X पुराण का अन्तिम भाग X X X श्रथ नेमिनाथ स्तुति सवैया X X ૨૨૫ धरम के धुरंधर सुनेमि नेमि नेमीसुर, दोष दुम दाहन को दावानल रूप है । काम बेलि मंडप कौं कंदन कुदाल दंड, मंडित अड सील पंडित तूप है || मोष मग मंडन हो रोष के विटन हो, जैन अवलंबन दे तारक भौं कूप हो । कीजे उपगार भवसागर को पार अब दीजे सुविचार प्रभू चारित के भूप हो | पद्धडी छंद प्रम्य प्रशस्ति कहां पांडव परित विसाल चारु, श्री गौतमादिक भाषित सुसारु । कहाँ मो प्रबोध यह अलप छीन, बलहीन तदपि वरनन सुकीन ॥ ६१ ॥
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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