SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 203
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विवार की र, लाकीदाश एव हेमराज मनु प्रचंड मुजदंश सुपारथ को गिर्यो । सुत विराट को उत्तर पृथु पृथ्वी पर्यो || १६४।। स्वेत नाम तस् भ्राता धायौ ता समै । नयो सत्य ललकारि अनूज के नांसमै ।। तिष्ठ तिष्ठ रे सल्य पहै रण ठाइ है । अनुज बाल मौ मारि कहां अब भाइ है ।।१६५।। केतु छत्र सब शस्त्र सुता के तोडि के । करयो मल्य को बिहबल कवहि मोरि के । घोर मार बहु दीनी स्वेतकुमार ही ! मर्यो सल्य नहिं तो भी करत सिंधार हो ।।१६।। भयो ऋद्ध गंगासुत याही अंतरै । परयो भाइ दुह मधि सरासन को धरै ।। करत जुद्ध तिन रोक्यो रण मैं स्वेत ही। लयो भीष्म भी छाह सरन ते खेत ही ॥१६७।। व अदृश्य रवि नभ में पाये मेह ज्यौं । बौन स्वेत के छाये भीषम देह त्यौं । देखि भीष्म को विह्वल कौरव घाइयो। मारि मारीये याहि काहत यो पाइयो ।।१९८|| स्वेत सामने प्रायत लखि दुरजोध कौं । पार्थ ताहि ललकारि सयो धरि क्रोध कौं ।। कहत पार्थ रे कौरब तु कहां जातु है । मो मुजान ते तो मद अहिं बिलातु है ।।१६६।। वच प्रचंड यौं भाखि दुर्बोधन रोकीयो । घनुष हौंचि गांडीव सु नर टंकोरीयो ।। हत्या प्रादि दस सरत कोरब ईसही। बहुरि बीस फुनि मारे इषु चालीसही ॥२०॥ मारि मारि बरि तीरौ भैसे छाइयो। तबहीं क्रोष बह कौरवपति ते खाइयो ।।
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy