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________________ पांडवपुराण न्याह और प्रत्याइ भ दिलाइ हो । सीस छेदि तुझ जम के गेह पठाइ हों ।।१५२।। यही बात कहि सरगन छोड़े प्रर्जुनां । कर्मी रूप्य को छिन मैं हति के चूनां ॥ हुनत विघ को जैसे श्रेयस छिनक में रूप्प खेत यो मार्यो नर ने तनक मै ॥१५३॥ जुद्ध मांहि थिर राह जुधिस्थिर र प्रत । स्वेत अश्त्र करि जो जित रथ राजित प्रतं ॥ रथारूढ रथनेमि विराजत जय करें। चक्रव्यूह को छेदि सु तीनों जस घरं ॥। १५४ ।। सकल सूर नृप सज्जन जादव बल तनें । मये चित मानंदित पुलकित तनठनें ॥ रोग हो । हिरण्यनाभ सेनानी मागघ को वही ॥। १५५ ।। लयौ मारि सो रण में घमंजने जदा भयौ खिन्न तिस बघ लखि रबि प्रांथ्यो तदा ॥ मन पश्चिमहि सागर स्थान सुकरन को । गर्यो सांतता कारन मगश्रम हरन कौं । । १५६ ।। दोहा मनु सुभटन को मरन लखि, आई करुनां सूर । भेज्यों तुम यह जाइ के, जुद्ध कर्यो तिन दूर ।। १५७ ।। सकल भूप निसि के भये, आये निज निज धान | सेनापति बिन चऋपति, बोस्यों मंत्रिहि बांनि ॥ १५८॥ सेनापति के पद विर्ष यो सुनि के तब मंत्री यो, तौलों कौरव राह ने पांडव तट यो जा६ कै थपीये और अनूप थाप्यो मेचक भूप ।। १५६ ।। पकयो दूत प्रदीन । मत कर बिनती कीन ।। १६० ।। १८१
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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