SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 197
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८० कविवर बुलाकीचन्द, बुलाकीदास एवं हेमराज दुरजोधन के सनमुखें, जयो पार्थ परबीन । रूप्य सामही नेमिरथ, धर्मज सेना तीन ॥१४६।। डिल तब परस्पर सूर लगे हकारि के। करत चूरणं गज हय रथ प्रायुष मारि । सूरवीर संबद्ध भये रन सामही । चले भाजि मुख मोरि सुकायर धाम हो ॥१४७।। सूरन के तन प्रायुष ज्यों ज्यों वर्ष ही । नारदादि सुरगन कर नाचत हर्ष ही। भनस पार्थ प्रति यौं दुरजोष हकारि के। कर्यो भस्म में तोहि हुतासन जारि के ॥१४॥ रे निलज्ज नर गर्व वृषा ही क्या करें । तोहि लाज नहिं प्रावत सनमुख खर।। यही बात सुनि अर्जुन पनु टंकोरीयो । प्रलय काल को मनौं धनाधन पोरीयो ।।१४६ छोष्टि बान संघात सुकौरव छाइयो। दुई मषि जालंधर तोलौं पाइयो ।। धनुष पार्थ को छेद्यौ रण में भावते । कर्यो जुद्ध फुनि दुदंर सरगन छावः ।।१५०।। तबहिं पार्थ सौं बोल्यों रूप्यकुमार यौं । वृथा पक्ष अन्याय करत भविषार क्यों ।। वासुदेव पर कन्याहार कहै सही। अरु परस्व अभिलाषी तस्कर भीवही ।। १५१।। यह बात सुनि अर्जुन बोल्यो रे वृथा । गजि गजि किम भाषत तू दादुर जया ॥
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy