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________________ २ कविवर बुलाखीचन्द, बुलाकीदास एवं हेमराज आदर्श बन गये । उत्तर में दास तो उत्तरी भारत में स्वाध्याय प्रेमियों के लिये मुलतान एवं दक्षिणा में राजस्थान, देश आदि सभी स्वाध्याय केन्द्रों पर समपार नाटक, बनारसी विलास जैसी कृतियों की स्वाध्याय एवं चर्चा होने लगी । यहां यह उल्लेखनीय है कि अधिकांश कवियों के संरक्षक विभिन्न भट्टारक थे जो अपने समय के सर्वाधिक प्रतिष्ठित जेन सन्त के रूप में समाहत थे । राजस्थान में मामेर, सांगानेर, अजमेर, नागौर जैसे नगर इनके केन्द्र थे जहाँ पचासों पंडित साहित्य सेवा में लगे रहते थे। लेकिन आगरा केन्द्र से सम्बन्धित कवि भट्टारकों के अधिक सम्पर्क में नहीं थे । बनारसीदास ऐसे कवियों के प्रादर्श थे । इसलिये संवत् १७०१ से १७५० तक के काल को बनारसीदास का उत्तरवर्ती काल के नाम से सम्बोधित किया कर सकता है। इस अवधि में भागश, कामी, सामानेर, प्रमेर, टोडारायसिंह जैसे नगर हिन्दी कवियों के प्रमुख केन्द्र थे । हमारे तीनों वित कवि बुलाखीचन्द बुलाकीदास एवं हेमराज इसी अवधि में होने वाले कवि थे जिनका प्रस्तुत भाग में विस्तृत अध्ययन प्रस्तुत किया जा रहा है। इन पचास वर्षो में मनोहरलाल, हीरानन्द, खडगसेन, प्रचलकीति, रामचन्द्र, जगतराम, जोधराज, नेमिचन्द्र भैया भगवतीवास, श्रानन्दघन जैसे पचासों कवि हुए जिन्होंने अपनी सैकड़ों रचनाओं से हिन्दी के भण्डार को समृद्ध बनाने में सफलता प्राप्त की । इन सभी कवियों का विशेष अध्ययन अकादमी के आगे के भागों में किया जायेगा ।
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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