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________________ पूर्व पीठिका विक्रम की १७वीं शताब्दि समाप्त होने के साथ ही देश में हिन्दी कवियों की बाढ़ सी प्रागयी। एक ही समय में बीसों कवि होने लगे। प्राकृत, संस्कृत, एवं अपभ्रंश में रचनायें करना बन्द सा हो गया । जन साधारण भी हिन्दी कृतियों को पढ़ने में सर्वाधिक रूचि दिखलाने लगा । भाषा कवियों का प्रादर बढ़ गया । कबीर, मीरा, सूरदास एवं तुलसी का नाम उत्तर भारत में श्रद्धा के साथ लिया जाने लगा एवं उनकी रचनाओं ने धार्मिक रचनाओं का स्थान से लिया । जैन कवि तो धारम्भ से ही अपभ्रंग के साथ-साथ राजस्थानी, ब्रज एवं हिन्दी में रचनायें निबद्ध करने में आगे थे । १७वीं शताब्दि के पूर्व कविवर सघारू, राजसिंह, ब्रह्मजिनदास, भ. ज्ञानभूषण, प्राचार्य सोमकीति, बूचराज, व्र. यशोधर, डीहल, ठक्कुरसी, ब्रह्म रायमल्ल, भ रत्नकीत्ति, कुमुदचन्द, बनारसीदास, रूपचन्द जैसे प्रभावी जैन कवि हो चुके थे जिन्होंने स्थानका मार्ग प्रशस्त कर दिया था तथा जन-मानस में हिन्दी रचनाओं के प्रति गहरी श्रद्धा उत्पन्न कर दी थी। पाठकों की इस श्रद्धा से हिन्दी कवियों को प्रत्यधिक बल मिला और उन्होंने विविध संज्ञा परक रचनाओं के निबद्ध करने में अपने आपको समर्पित कर दिया । १६वीं १७वीं एवं १८वीं शताब्दि में एक ग्रोर गुजरात एवं बागड प्रदेश हिन्दी एवं राजस्थानी कवियों का केन्द्र बना रहा तो दूसरी ओर आगरा नगर जैन कवियों के लिये तीर्थ बनने लगा। गुजरात एवं बागड प्रदेश में भट्टारकों एवं उनके शिष्य प्रशिष्यों का जोर था । वे चरित, रास, वेलि, कथा एवं भक्ति परक रचनाओंों को निबद्ध करने में लगे हुए थे तो दूसरी ओर भागरा जैसे नगर में अध्यात्मवादी कवियों का जोर या श्रौर वे समयसार नाटक एवं माध्यात्मिक कृतियों के लिखने में भूम रहे थे । श्रात्म तत्व के प्रेमी ये कवि देश में एक नयी लहर फैलाने में लगे हुए थे। इसलिये कविवर बनारसीदास एवं उनकी मंडली के कवि रूपचन्द कोरपाल जैसे कवियों ने दिन-रात एक करके पचासों प्राध्यात्मिक रचनायें लिखने में सफलता प्राप्त की जिनका देश के सभी भागों में जोर का स्वागत हुआ । बनारसी
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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