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________________ १६४ कविवर बुलाकीचन्द बलाकीदास एवं हेमराज मारणार मर मूषक रम, नागन कुल इक जारी परें । गज परि शावक अरु मृगराइ, खेलै मापस में अधिकाइ ।।१४।। सूके सर बह जल सौं भरे, कोक मराल सबद तहाँ करे । शुराम या मिन, सौ नि मन मानो पूमि ॥१५॥ सिस प्रभाव वन मचिरज पर्यों, सब रितु के फल फूलों भरयो। यह अचिरज मैं देख्यो राय, तिनकी भेट करी मैं माय ।।१५।। दोहा वचन सुनें वनपास के, हरयो रित पति भूप । सृषावंत ज्यौं नर लहै, ललि के ममृत रूप ॥१५२६६ . सार वित्त वा पानहिं राजा पाए । सात पंडि उठि प्रणम्यौं जिन दिस काइ के। जा प्रसाद चित परमानन्द भनंदिए । ऐसे परन कमल जुग जिन के बंदिए ॥१५|| बमान गुन सोन गुनी गुनपाल है। धर्मवंत प्रत बंत सुसंत दयाल है। सुजस सवा जग राइ बई जिन बंदए । नमस्कार · कर जोरि जिनुलदे वंदए ॥१४॥ इति श्रीमन्महाशीलाभरणभूषित जैनी नामांकितयां लाला धुलाकीदास विरचितायो भारत भाषायां में रिणक जिन बंदनोत्साह वर्णनो नाम प्रथमः प्रभवः ।
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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